तुम कितनी अच्छी हो!
क्यों अब क्या हुआ? - रश्मि बोली
तुमने मेरा दिल जीत लिया- भुवनीश ने कहा
शादी के तीस साल हो गए, अब तक? - रश्मि बोली
नही नही ऐसी बात न थी, मैंने तो हमेशा ही तुम्हें प्यार किया है- भुवनीश विद्रूप हँसी हँसते हुए बोला
अब क्या हुआ? तुम्हारे और साथी कहाँ गए- रश्मि मुँह बनाती बोली
अच्छा तो मैं समझ गई, अब कोई साथ देने वाले नही- थोड़ी देर रुक कर फिर वह बोली
फिर तुमने वही राग सुनाना शुरू किया- भुवनीश बोला
मैं क्या झूठ बोल रही हूँ- रश्मि गुस्से में बोली
चलो जो कुछ हुआ मैं उसके लिए माफ़ी मांगता हूँ- भुवनीश ने नम्र होकर कहा
हाँ !हाँ !अब बोलोगे ही, मेरी सारी जवानी यूँ ही गुजर गई- कभी तुमने मुझे अपना समझा ही कहाँ? - उसके अंदर की मार्मिकता उभर उठी थी।
अरे यार छोड़ो सब बातें, सब कुछ अपने वश में नही होता, लोग कान भरते रहे, मैं उनकी बात मानता रहा, इसी लिए तो मुझे भी अफसोस है।
तुम भी तो मेरी बात सुनने को तैयार न थी,चलो छोड़ो न, एक कप चाय बना लाओ- मुस्कराते हुए बोला- भुवनीश बोला
रश्मि मुस्करा पड़ी।
ठीक है, चलो अब तो अच्छी लगी बुढ़ापे में- रश्मि हँस कर बोली और फिर रश्मि उठ कर चाय बनाने चली गई।।
©कवि डॉ. जय प्रकाश प्रजापति' अंकुश कानपुरी'
२३-११-२०२३. रात्रि- १०:४८
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें