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शनिवार, 25 नवंबर 2023

नयी पहचान

 

नयी पहचान
कनक के हाथों में मोबाइल था और चेतन जी हाथ में रिमोट कंट्रोल ले सभी चैनलों का मुआयना कर रहे थे। समाचारों के चैनलों और सेयर चैनलों से चेतन जी का समय तो गुजर ही जाता था, पर कनक उब जाती थी। दिनभर कितना और क्या बातें करते। फिर दोनों एक- दूसरे के बगल में बैठे अपने-अपने तरीके से समय व्यतीत कर रहे थे। सेवानिवृति के बाद तो दोस्तों, परिचितों का दायरा भी सीमित रह गया था। विदेश में रह रहे बच्चों से रोज रात में ही बात हो पाती थी।
पारिवारिक जिम्मेवारियाँ निभाने में कनक के दोस्त पीछे छूट गये थे। आज कनक को अपने दोस्तों की याद आ रही थी। सोचने लगी- घंटों बातें करते थे, फिर भी बातें खत्म नहीं होती थी। उस समय वक्त नहीं था और आज वक्त है तो दोस्त दूर हो गये।
सुन रखा था कि फेसबुक पर दोस्तों को ढूँढा जा सकता है।
उत्साहित हो पति से कहती है-
" सुनिए! फेसबुक पर मेरी दोस्त लता को ढूँढिए न।"
"आज तुम्हें लता कैसे याद आ गयी?"
"यों ही। कुछ काम नहीं है तो दोस्त ही याद आते हैं।
आधे घंटे में लता नहीं उसकी पुरानी पड़ोसन निर्मला फेसबुक पर मिल गयी। नहीं चाहते हुए भी कनक ने उससे बातें की। जिस पड़ोसन को वह कभी पसंद नहीं करती थी उससे आज घंटों बातें की। निर्मला भी अपनी पुरानी पड़ोसन से फोन पर बात कर बहुत खुश हुई। ठीक उसी तरह जैसे पुरानी चीजें नये लेबल के साथ मार्केट में आती हैं। कुछ साल पहले ही पति बच्चों के सहारे छोड़कर चल बसे थे। दोनों ने एक- दूसरे से अपना सुख- दुख साझा किया और बहुत सारे परिचितों का उसी से नम्बर भी मिल गया। उसमें लता भी थी। फोन रखते ही कनक एक लम्बी साँसे लेती हुई अंगडाई भरी, मानों बुझते दीये में तेल डाल दिया गया हो।
पुष्पा पाण्डेय
राँची,झारखंड।

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