लड़की हर रात नींद में भी
अंजुरी भर-भरके पानी
छिड़कती रहती अपनी आँखों पर
धूल-मिट्टी और किरचों के साफ़ होने पर
उसे दिखाई देने लगेंगे
वो सपने वो लोग
जिन्हें वो नींद में भी देखना चाहती है
इंतज़ार की कच्ची डोर
बार-बार टूट जाती
अब डोर में डोर कम
गिरहें ज्यादा थीं
उलझे बालों की लटें भी
सुलझने के इंतज़ार में
और उलझती चली जा रहीं थीं
ऐसी तमाम रातें
लम्बी-लम्बी उम्र लिखवा कर लातीं अपने नाम
लड़की रात भर दम साधे
अँधेरे के लट्टू पर
उजालों के धागे लपेटती
और जैसे ही चहचहाती दूर कहीं कोई चिरैया
वो अपने सपनों पर
लगा देती पलकों का ताला
आईने के सामने खड़ी होकर
अंजुरी भर पानी छिड़कती चेहरे पर
और गौर से देखती
लाल-लाल, फूली-फूली आँखों को
गोया पलकों के एक किनारे पर
कहीं कोई सपना छूट तो नहीं गया न
पगली है
इतना आसान होता है क्या
सुग्गे के झूठे जामुन जैसे
मीठे जामुनी ख़्वाबों का नींद में आना ...
मालिनी गौतम
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