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शुक्रवार, 24 नवंबर 2023

ओ हेनरी – पाठकों के प्रिय कहानीकार

 

विजय शर्मा
हिन्दी पाठक ओ हेनरी से बखूबी परिचित है कारण उनकी कहानियाँ पाठ्यक्रम में शामिल हैं, कौन भूल सकता है ‘गिफ्ट ऑफ द मैगी’ को जिसमें क्रिसमस पर पति को उपहार देने के लिए पत्नी अपने लम्बे, घने सुन्दर बाल कटा कर मिले पैसों से पति की घडी के लिए पट्टा खरीदती है जबकि पति घडी बेच कर पत्नी के बालों के लिए क्लिप ले आया है. आज भी पाठक इसे उतने ही शौक से पढ़ते हैं जैसे की पिछली और उससे भी पिछली पीढ़ी इसे पढ़ती थी. उनकी कहानियाँ टीवी के परदे पर भी आई हैं और उन्हें दर्शकों की प्रशंसा मिली है. ‘कैबेज एंड किंग्स’, ‘द फोर मिलियन’, द जेंटल ग्राफ्टर’ तथा ‘ओप्शंस’ ओ हेनरी के कहानी संग्रह हैं. परंतु इंग्लिश आलोचक अक्सर उनकी उपेक्षा करते हैं कुछ आलोचक उन्हें मात्र ‘चालाक पत्रकार’ की उपाधि देकर कन्नी काट लेते हैं. हेराल्ड ब्लूम के ‘वेस्टर्न केनन’ जिसमें साकी और मोपासां शामिल हैं वहाँ भी ओ हेनरी नदारद हैं जबकि साकी और मोपासां से बराबर उनकी तुलना होती है. पर पाठकों ने उन्हें पर्याप्त सम्मान दिया है वरना क्या कारण है कि उनकी कहानियाँ आज भी प्रकाशित होती हैं. लेखक का असल मूल्यांकन पाठक करता है आलोचक नहीं. ओ हेनरी पाठकों के प्रिय कहानीकार हैं क्योंकि उन्हें कहानी कहने की कला आती है. उनकी कहानियों में कहानीपन, कथा रस होता है. उनके यहाँ चरित्र होते हैं और होता है कथानक वे बेकार की बौद्धिक कलाबाजियाँ नहीं दिखाते हैं न शैली की दुरूहता न ही दार्शनिक फलसफा झाड़ते हैं. उनकी कहानियों में रंगीन वर्णन के साथ महीन हास्य मिलता है साथ ही होता है जीवन में संयोग का सुयोग और जीवन की विडम्बनाओं का चित्रण. कहानी का अंत अक्सर आश्चर्य उत्पन्न करता है.

उनकी कहानियों पर फिल्में बनी जिन्होंने कलाकारों को स्थापित कर दिया. ‘बटरफ्लाई ८’ ने दर्शकों का ध्यान एलिज़ाबेथ टेलर की ओर खींचा जबकि पॉल न्यूमैन ‘फ्रॉम द टेरस’ के कारण चर्चित हुए.

ओ हेनरी का वास्तविक नाम विलियम सिडनी पोर्टर था. उनके पिता एक चिकित्सक थे, जब हेनरी मात्र तीन वर्ष के थे उनकी माँ गुजर गई फलतः बच्चे का पालन पोषण उसकी दादी और बुआ ने किया. १८६२ में नोर्थ कैरोलीना में जन्मे हेनरी ने पंद्रह वर्ष की उम्र में स्कूल छोड़ दिया और १८८२ में टेक्सास चले आए जहाँ उन्होंने १८९१ से चार साल तक बैंक क्लार्क का काम किया और १८९५ से करीब दो साल के लिए हडसन में बतौर पत्रकार काम किया. बैंक घोटाले के सन्दर्भ में उन्होंने तीन साल जेल भी काटी. असल में इस घोटाले में उनका कितना हाथ था भी या नहीं इस पर बहस है. पाँच साल की सजा हुई थी पर तीन साल के बाद छोड़ दिए गए. जेल से निकलने पर उन्होंने अपना नाम बदल लिया और ओ हेनरी नाम से जाने लगे. जेल में ही वे लिखने लगे थे क्योंकि उन्हें अपनी बेटी मार्गरेट पालनी थी. इसके बाद वे न्यूयॉर्क में जम गए और मात्र लेखन करने लगे. तीन साल तक बराबर वे न्यूयॉर्क वर्ल्ड में प्रति सप्ताह कहानी लिखते रहे साथ ही अन्य पत्रिकाओं में भी लगातार लिखते रहे.

उन्होंने अपने समय की सब लोकप्रिय अमेरिकी पत्रिकाओं में कहानियाँ लिखीं. उनकी कहानी ‘द रैनसम ऑफ रेड चीफ’ हास्य में मार्क ट्वैन की कहानी की याद दिलाती है. इसमें दस साल का एक बच्चा हाथ में रसोई का चाकू लिए अपहरणकर्ताओं को भयभीत करता है. कहानी कहने का तरीका लाजवाब है जिसे पढ़ कर ही उसका पूरा आनन्द उठाया जा सकता है. हाल में यूरेका प्रोडक्शन ने अपने ग्यारहवें अंक में उनकी कहानियों को ग्राफिक क्लासिक्स ने रेखांकन के रूप में प्रस्तुत किया गया है जिससे उनकी कहानियों को नया अवतार, अनोखा रंग रूप मिल गया है. इसमें चोटी के कलाकारों ने कहानियों को कॉमिक बुक के रूप में सजाया है. यूरेका प्रोडक्शन ने अपने ग्राफिक क्लासिक्स सिरीज में आर्थर कानन डॉयल, एडगर एलन पो, एच जी वेल्स, रोबर्ट लुई स्टीवेंसन आदि की कहानियों को भी प्रस्तुत किया है. हमारे अपने देश में प्रसिद्ध साहित्यकारों के कम पर इस तरह चित्रांकन का कोई प्रयास नजर नहीं आता है. यदि ऐसा हो तो हिन्दी की प्रसिद्ध कहानियों को नई जान मिल जाएगी और नई पीढ़ी भी हिन्दी साहित्य में रूचि लेने लगेगी. बहुत पहले धर्मयुग में कामायनी पर आधारित कुछ नायाब चित्र देखे थे परंतु वह स्वतंत्र कला थी. कामायनी की कहानी को प्रदर्शित करने वाली नहीं. इस दिशा में अवश्य सोचा जाना चाहिए. खैर अभी हेनरी की बात करते हैं.

कहानी के घुमावदार अंत को देखते हुए एक पाठक ने ओ हेनरी को एम. नाइट श्यामलन का साहित्यिक पूर्वज कहा है. कहानियों का ऐसा अंत आज के पाठक के लिए भले ही अनोखा न हो क्योंकि हेनरी से प्रेरणा पाकर बहुतों ने वैसी कहानियाँ लिखी हैं जिनसे आज का पाठक भली भाँति परिचित है परंतु आज से सौ साल पहले जब वे कहानियाँ लिखी गई थीं तब ऐसा अंत पाठक को एक खास आनन्द और रोमांच की अनुभूति से भर देता था. आज भी उन्हें पढ़ना मजा देता है और अंत खटकता नहीं है. जैसे की ‘रोड्स ऑफ डेस्टिनी’ का एक युवा कवि बनने के चक्कर में अपना घर त्याग देता है जब वह चौराहे पर पहुँचता है तो कहानी अलग अलग अध्यायों में कहती है कि यदि वह इस रह पर जाएगा तो क्या होगा. हर राह चुनने पर अलग अंत होता है.

ओ हेनरी १९१० में गुजर गए परंतु उनकी हास्य, रोमानी और उदास कहानियाँ आज भी रेलेवेंट हैं. उनकी कहानियों में नैतिकता, त्रासदी, साहस सब मिलता हैं. ‘एन अनफिनिश्ड स्टोरी’ बताती है कि स्वर्ग किसे मिलेगा, ‘आफ्टर ट्वंटी ईयर्स’ तथा ‘द फ्रेंडली कॉल’ दोस्ती की संवेदनशील कहानियाँ हैं और ‘ए स्ट्रैंज स्टोरी’ अपने नाम के अनुरूप अनोखी है जबकि ‘द फर्निश्ड रूम’ एकाकीपन और मृत्यु की दुःखद कथा है.

पढ़ने के शौकीन ओ हेनरी ने तरह तरह के काम किए. १८८२ में शादी की. १८८४ में एक हास्य साप्ताहिक ‘द रोलिंग स्टोन’ प्रारम्भ किया पर चला नहीं तो पत्रकार और स्तम्भकार बन गए.

उनके दस कहानी संग्रह तथा करीब ६०० कहानियाँ हैं जो उनके जीवित रहते प्रकाशित हुई. तीन संग्रह ‘सिक्सेस एंड सेवंस’, ‘रोलिंग स्टोंस’ तथा ‘वैफ्स एंड स्ट्रेज’ मृत्योपरांत प्रकाशित हुए. अपनी बढ़ती उम्र में वे काफी बीमार थे. उन्हें पीने की लत पड़ गई थी, स्वास्थ्य खराब था और आर्थिक तंगी भी उन्हें परेशान किए हुए थी अंत में वे लीवर की बीमारी से गुजरे. मृत्यु के तीन साल पहले उन्होंने १९०७ में सारा लिंडसे कोलमैन से विवाह किया पर शादी मुश्किल से एक साल टिकी और उनका विच्छेद हो गया. १८८७ में एथोल एस्टेस रोच से विवाह किया जिससे एक बेटा और एक बेटी हुई. जब उन्होंने अपनी पत्रिका प्रारम्भ की थी तब से ही बहुत पीने लगे थे. जब उन्हें कोर्ट की सुनवाई के लिए बुलाया गया वे भाग गए और कहा जाता है कि किसी अल जेनिंग्स के साथ दक्षिण अमेरिका और मैक्सिको में घूमते रहे परंतु जब पता चला कि उनकी पत्नी बीमार हैं और मृत्यु के करीब है तो ऑस्टिन लौट पड़े और उन्हें सजा हुई. उन्होने शुरुआत में जेल के भीतर से जो कहानियाँ लिखीं उनमें मध्य और दक्षिण अमेरिका की यात्राओं का रोचक वर्णन था जिसे पाठकों ने हाथों हाथ लिया.

‘द लास्ट लीफ’ में दो कलाकार स्त्रियों को उन्होंने अपनी कथा में पिरोया है यह कहानी उनकी अन्य कहानियों से भिन्न है इसमें लेस्बियन कथानक अंतःसलिला की भाँति चलता है.

ओ हेनरी के नाम पर एक पुरस्कार भी स्थापित है जो इंग्लिश भाषा में लिखी तथा अमेरिका एवं कनाडा कहानियों की पत्रिकाओं में छपी कहानियों के लिए दिया जाता है जिसका निर्णय प्रतिवर्ष चुने गए तीन निर्णायक करते हैं. यह पुरस्कार १९१९ से ही दिया जा रहा है.

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( विजय शर्मा, १५१, न्यू बाराद्वारी, जमशेदपुर ८३१००१. फोनः ०६५७-२४३६२५१, ०९४३०३८१७१८ ई-मेलः vijshain@yahoo.com )

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