सुबह सड़कों पर मुस्कुराते उजाले मिलेंगे
शाम ढले उदास तन्हाई के छाले मिलेंगे
चमकती दावतों में इतना झूठा छोड़ा जायेगा
कचरे में ग़रीब बच्चे ढूंढ़ते निवाले मिलेंगे
ताज भी होगा फूल मालाएं भी मेहकेंगी
टुटा हुआ बदन ज़ख़्मी पैरों में छाले मिलेंगे
दिल ही नहीं अपनी जान भी दे दें मुहब्बत में
खुदगर्ज़ दुनियां में कहाँ ऐसे मतवाले मिलेंगे
किताबों और रंगों की लड़ाई सब फिज़ूल है
बंद करें ऑंखें तो हर दिल में शिवाले मिलेंगे
दर्द का सैलाब सींनें में होठों पर तबस्सुम होगा
मुहब्बत करने वालों के अंदाज़ निराले मिलेंगे
डॉ योगेंद्र "मुसाफ़िर"
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