गोवर्धन यादव
सावित्री पढी-लिखी युवती है. पढ़ने में जितनी निपुण, उतनी ही खूबसूरत. एम.ए. करते ही उसकी शादी ,एक बड़े रईस परिवार में हो गयी. घर में नौकर-चाकरों की भीड़ लगी हुए है. अतः उसके लिए करने को कोई काम न बचता था. वह चाहती थी कि उसे भी कोई जाब कर लेना चाहिए, लेकिन अपने मन की बात वह अपने पति से कह नहीं पायी. उसने सोचा जब इनका अच्छा मूड होगा, उस दिन वह अपने मन की बात कह देगी. समय बीतता रहा, लेकिन उसके मन की बात, मन में ही धरी रह गयी. एक दिन दो मित्र बैठे बात कर रहे थे और वह उनके लिए चाय बना रही थी. दोनों के बीच नारी की स्वतंत्रता को लेकर गर्मा-गरम बहस चल रही थी. उसके पति ने अपने मित्र के सामने शेखी बघारते हुए कहा कि वह नारी की स्वतंत्रता का पक्षधर है. उसका यह भी मत था कि पढी-लिखी युवतियों को दिन भर खाली बैठे रहने के अपेक्षा कुछ करना चाहिए. उसने सोचा कि अब वह समय आ गया है, जब उसे अपने मन की बात कह देना चाहिए, लेकिन उनके मित्र के सामने कहना उचित नहीं लगा. शाम को उसने अपने मन की बात उजागर करते हुए उसने कहा:-विद्यानिकेतन की प्राचार्या उसकी जान पहचान की हैं, एक मुलाकात में उन्होंने मुझसे कहा था कि खाली बैठे रहने के अपेक्षा मुझे कोई जाब कर लेना चाहिए. यदि तुम्हारा मूड बच्चों को पढ़ाने का हो तो मुझे बतला देना. यदि आप अनुमति दें तो मैं उनसे कहकर अपनी ज्वाइनिंग दे दूँ. बात सुनते ही वह भड़क उठा था:-“क्या बकती हो तुम? दुबारा ऐसी-वैसी बात करने की सोचना भी मत. हमारे जैसे ऊँचे खानदान की औरतें बेपरदा होकर बाहर नहीं निकलती, नौकरी करना तो दूर की बात है. फ़िर ईश्वर की दया से हमारे पास क्या कमी है, आराम से इसी चारदीवारी के बीच रहो. अपने पति के मुख से ऐसी बात सुनकर उसका मन बुझ सा गया था. वह सोचने लगी थी कि सारे मर्द बातें तो खूब करते हैं ”नारी स्वतंत्रता” की,लेकिन जब उसे निभाने का मौका आते है, तो अपने पैर पीछे खींच लेते हैं. कथनी और करनी में क्या फ़र्क होता है, वह जान गई थी.
103,कावेरी नगर,छिन्दवाडा (म.प्र.) 480001
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