ग़ज़ल
वो जीने का सहारा बन रहा था
मेरे दिल का ठिकाना बन रहा था
ज़माना हो गया फिर मेरा दुश्मन
कोई जब मेरा अपना बन रहा था
यही तो खेल क़िस्मत का है प्यारे
कहां सोचा हमारा बन रहा था
नहीं मतलब किसी से पूछने का
पता है कि वो कितना बन रहा था
बांट कर देख लेते प्यार थोड़ा
ये जब दिल तेरा दरिया बन रहा था
ये अलग बात थी कि तुम न आए
तुमसे मिलने का मौक़ा बन रहा था
महेंद्र राठौर
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