राम जाने क्यों अकारण आपका ये रोष है
गीत में भी जब हमारे प्रीति का जयघोष है
झूठ ले अपनी कटारी ढूँढ़ता है अब हमें
भीड़ में सच बोल आये ये हमारा दोष है
याचनाएँ हाथ खाली लौट आतीं द्वार से
आजकल संवेदना का रिक्त सारा कोष है
ज़िन्दगी में अनुभवों के पृष्ठ इतने पढ़ लिये
वक़्त ने जो भी दिया उस हाल में संतोष है
प्रशान्त उपाध्याय --- 6398197138
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