हम दर्द स्वयं के लिखते हैं
अब भाव तुम्हारे तुम जानो
हम दर्द स्वयं के लिखते हैं
रिश्तों की अनजानी है डगर
कविता क्या है हम क्या जानें
बस मन की भाषा ही पहचानें
मन जो बोले वह कह देते हैं
जो लोग कहें सुन लेते हैं।
कोई चेहरा देख के मोहित है
कोई चाल देख दिल फेंक रहा
जिसने मन के घावों को देखा
वह व्याकुल सा बन डोल रहा।
सावन की रिमझिम सबको भाए
पर शीत की ठिठुरन कौन सहे
ज्यों ज्यों सूरज की ताप तपे
त्यों त्यों जनता त्राहिमाम कहे।
मौसम सब जीवन देने वाले हैं
कोई अल्हड़ हैं कोई मतवाले हैं
जो प्रतिकूल में भी अनुकूल रहें
इंसान वही तो हिम्मतवाले हैं।
-महेश खरे
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