आज के रचना

उहो,अब की पास कर गया ( कहानी ), तमस और साम्‍प्रदायिकता ( आलेख ),समाज सुधारक गुरु संत घासीदास ( आलेख)

गुरुवार, 6 जुलाई 2023

भावनाओं के बुलबुले

    आखिर वो पड़ाव आ ही गया ,जहाँ सरिता को उतरना था। माँ के जाने के बाद आज पाँच साल बाद सरिता अपने बच्चों और पति के साथ मायके आई थी। बच्चों के साथ वो भी बड़ी उत्साहित थी। रास्ते भर यही सोचती रही-
    आम की बगिया में बच्चों को लेकर जरूर जाऊँगी, जहाँ मेरा लगाया हुआ भी एक आम का वृक्ष है। पापा के साथ मिलकर हमने लगाया था। तालाब पर तो जाना ही है। कितना कमल-पुष्प खिलता था उसमें। एक फूल जरूर उस तालाब से निकाल कर लाऊँगी। पिछली बार तो सोनु बहुत छोटा था।उसे कहाँ याद रहा होगा?कुँआ पर वाली चाची का आचार तो याद आते ही मुँह में पानी आ जाता है। पता नहीं अब चाची की तबियत कैसी है?
    "तुम्हारा स्टेशन आ गया। किन ख्यालों में डुबी हो?"
    "देखो, भैया आयेंगे होंगे।"
    ट्रेन से उतर कर चारों तरफ नजर दौड़ाई।
    " फोनकर पूछो तो कहाँ खड़े है?"
    तभी फोन आ ही गया।
    " सरिता! मैं ने जीप भेज दिया है। बाहर निकल कर देख लेना। व्यस्तता के कारण मैं नहीं आ सका।"
    "अच्छा"
    एक बुझती सी आवाज में सरिता ने कहा।------
    घर पहुँचते ही भाभी से गले मिली, लेकिन नजरे किसी को ढूँढ रही थी। सबकुछ बदल गया था। माँ के कमरा अब स्टोर रूम बन गया था। सोच कर तो आई थी कि उसी कमरे में रहूँगी। खैर--
    थोड़ी ही देर में सबकुछ पता कर लिया सरिता ने। आम की बगिया की जगह मिले भैया ने अपना नया घर बनवा लिया है। तालाब तो अब समतल जमीन में तब्दील हो चुका है। वहाँ स्कूल खुलने वाला है। कुँआ पर की चाची तो पिछले साल ही भगवान को प्यारी हो गयी थीं।
    क्या यह वही मेरा गाँव है जहाँ कभी कोई गाँव की बेटी ससुराल से आती थी तो जमघट लग जाता था। सभी अपना प्यार पल में ही उढ़ेल देना चाहते थे।------
    भाभी चाय पानी देकर अपने काम में व्यस्त हो गयी।भैया औपचारिकता के बाद आराम करने को कह गए और......
    तो क्या रास्ते भर की कल्पना एक स्वप्न मात्र था।
    पति से धीरे बोली-
    "लौटती की टिकट कर लिए हो?"
    "सिर्फ अपना किया था। तुम तो बीस दिन रहने वाली थी?"
    पुष्पा पाण्डेय
    राँची,झारखंड।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें