रामेश्वर महादेव वाढेकर
कई दिनों से दिल की बात कहनी थी।कैसे बताऊं,समझ नहीं रहा।आज किसी भी
हालात में बताऊंगा।तभी दिल को सुकून मिलेगा।वह सिग्नल पर दिखाई दी।इसके
पहले कई बार दिखी थी।उसे पहली बार भी वहीं देखा।देखते ही मैं प्रेम में
डूब गया।मेरे बारे में उसके क्या विचार है पता नहीं।उसे देखने हर दिन यहां
आता,किन्तु बोलने की हिम्मत अभी तक नहीं हुई।सामने खड़ी है नज़रों के, उतने
में सिग्नल छूटा। पीछे से गाड़ियां के हॉर्न बज रहे थे। मुझे सुनाई या
दिखाई नहीं दिया,उसके बिना। ट्राफिक पुलिस ने गाड़ी साइड में लगाने का
इशारा किया। कुछ समय बाद गुस्से में कहा, “आपको नियम समझ नहीं आता।”
- “सर,मुझ से गलती हो गई,मैं फाइन भरने को तयार हूं।”
- “जल्दी फाइन भरो। यहां से रफा- दफा हो।”
दिल
में इच्छा न होकर भी गाड़ी शुरू की। धीरे-धीरे गाड़ी चला रहा था,उसके तरफ
देखकर।गाड़ी की तरफ वह आती दिखाई दी। मैंने गाड़ी खड़ी की।गाड़ी में बैठा
रहा।उसने गाड़ी का शीशा खटखटाया।मैंने दरवाजे का शीशा नीचे किया,बाद में
नीचे उतरा।उसके तरफ देखता रहा।वह बोली जा रही थी,मैं सिर्फ सुनता रहा।
उसने जोर से कहा, “मैं आपको बहुत दिनों से देखती हूं।आप अनेक बार
सिग्नल छूटने के पश्चात भी वहीं खड़े रहते हैं। आपसे पुलिस वाला किस तरह
बातें करता है,यह मैंने सुना, देखा।आप संस्कारी व्यक्ति दिखते हैं,दूबारा
ऐसा मत करो।”
मैं देखता ही रहा।कुछ समय बाद मैंने कहा, “जी, दूबारा गलती नहीं
होगी।जोरों से सांस ली और कुछ कहने की हिम्मत जुटा रहा था,लेकिन कह नहीं
पाया।”
उसने कहा, “आप को कुछ कहना है।”
- “जी। कैसे बताऊं,समझ नहीं आ रहा।”
- “जो दिल में है,बता दो। मुझे बुरा नहीं लगेगा। आदत पड़ी है सुनने की।”
- “खुशी,मुझे आप से प्रेम है।”
- “आप क्यां कह रहे हैं,पता है आप को। होश में हैं आप।”
-
“हां। मैं होश में हूं। मुझे कई दिनों से दिल की बात बतानी थी। मैं डर के
मारे नहीं बता पाया। मुझे समाज,परिवार का डर नहीं था,आप को कैसा लगेगा इस
बात का डर था।”
- “स्वराज,मैं आप से प्रेम नहीं करती।”
- “क्यों?मुझ में कमियां हैं,होगी भी!हर मनुष्य में कुछ कमियां रहती हैं। मैं आपको पसंद नहीं हूं,तो आप को भूलाने की कोशिश करूंगा।”
- “ऐसा कुछ नहीं।आप को कोई भी लड़की पसंद करेगी।आप में कई अच्छे गुण हैं। मैं ही आपके लायक नहीं हूं।”
- “मुझे आप पसंद हैं। मैं आपसे वि वाह करना चाहता हूं। सोचने के लिए समय चाहिए,तो आप लीजिए। मुझे आपके हां का इंतजार रहेगा।”
- “स्वराज,मैं हिजड़ा,छक्का,किन्नर,नपुंसक,थर् ड जेंडर,तृतीय पंथी आदि नामों से प्रसिद्ध हूं।मुझे मेरे परिवार ने नहीं स्वीकारा,तो समाज,आपका परिवार कैसे स्वीकार करेंगा।”
- “खुशी,आप कौन हो? यह मुझे मायने नहीं रखता।आप मुझे पसंद है। मैं तुम्हें दिल से चाहता हूं। मैं आपके बिना नहीं जी सकता।”
- “मैं ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हूं ।”
- “मुझे कोई दिक्कत नहीं।मैं आपको पढ़ाऊंगा।मेरी मां समाजसेविका है।हमारे रिश्तें को स्वीकार करेगी।मां भी तृतीय पंथियों के लिए निरंतर कार्य करती आई है।”
- “मुझे अभी से डर लग रहा है कि आपकी मां ने शादी को अनुमति नहीं दी तो।”
- “मैं मां, परिवार को मनाऊंगा।मैं आपके साथ हूं।रही बात समाज की,इससे मुझे कोई मतलब नहीं।”
- “आप मुझे पत्नी के रूप में स्वी कार कर रहें हो,मैं
भाग्यशाली हूं।आप मेरे लिए इतना कर रहें हैं,मुझे बहुत ख़ुशी हुई। मैं
तयार हूं शादी के लिए। किन्तु मेरा साथ कभी मत छोड़ना।साथ छोड़ा तो,मैं जी
नहीं सकती। पूरी तरह टूटकर बिखर जाऊंगी।”
- “साथ कभी नहीं छोडूंगा।”
-
“स्वराज, तृतीय पंथियों के बुरे हालात है।उनका जीवन नरक बना है। समाज बुरी
नजरों से देखता है उनके तरफ। वे जीकर भी,मरे हुए हैं।वेश्या से भी बत्तर
ज़िंदगी है उनकी।मैंने भी बहुत वेदना सही है। लोग क्या-क्या कहते हैं और
क्या-क्या करते हैं,मुझे मालूम है।मैं बया भी नहीं कर सकती। हम सिंग्नल,रेल
में शौक से खड़े नहीं रहते,हमारी मजबूरी है।उन्हें कोई काम पर रखता
नहीं।रख भी लिया,तो शोषण ही करता,शारीरिक और मानसिक।मैं उनके के लिए कार्य
करना चाहती हूं।”
- “तुम्हारा साथ निरंतर दूंगा। मैं भी उनके अधिकार के लिए संघर्ष करता रहूंगा।”
-
“स्वराज,अभी तक तृतीय पंथियों के लिए कई कानून,बील पास हुए,किन्तु कोई
फायदा नहीं।अप्रैल,2014 में सुप्रीम कोर्ट ने किन्नर को तीसरे लिंग के रूप
में पहचान दी। किन्नर को जन्म प्रमाणपत्र, राशनकार्ड, पासपोर्ट, ड्राइविंग
लाइसेंस आदि में तीसरे लिंग के तौर पर पहचान हासिल करने का अधिकार मिला।विवाह
करना,तलाक देना, संतान को गोद लेना आदि अधिकार प्राप्त हुए। कुछ वर्ष
पश्चात यानी 2016 में “ट्रांसजेंडर पर्सन्स”बील पास हुआ। जिससे उन्हें
शिक्षा,सामाजिक,आर्थिक आदि क्षेत्र में खुलकर जीने का अधिकार मिला।कालांतर
से यानी 2019 में “ट्रांसजेंडर व्यक्ति अधिनियम” बना। इससे तृतीय पंथी के
अधिकार का संरक्षण होने वाला था।इन तिन्हों घटना पर प्रकाश डालने के पश्चात
समझ आता है कि तृतीय पंथियों की समस्या कम नहीं हुई,बढ़ी है।”
- “खुशी,आप सही कह रही हैं,कानून सिर्फ कागज़ पर है,अस्तित्व में नहीं।कानून का अमल हो,इस लिए हम संघर्ष करते रहेंगे।”
-
“स्वराज,तृतीय लिंग को सही मायने में मान्यता ही नहीं मिली।बस,रेल,विमान
आदि में सफ़र करने के लिए आरक्षित सीट करने की सुविधा उपलब्ध रहती
हैं,उसमें थर्ड जेंडर पर्याय ही नहीं।इन उदाहरण से उनका अस्तित्व समझ आता
हैं।”
-
“सही है खुशी।मैंने भी थर्ड जेंडर के संदर्भ में जानकारी हासिल की
है।उनकी दयनीय अवस्था है।भारत में वर्ष 2009 में लगभग थर्ड जेंडर वर्ग की
संख्या पांच
लाख थी,यह मैंने एक रिपोर्ट में पढ़ा है।उन्हें न्याय दिलाना ही हमारा
मकसद हैं। बहुत समय बीता;हम रास्ते पर खड़े हैं।गहन विषय पर चर्चा
हुई।अच्छा लगा। चलता हूं, मां राह देखती होगी। मां को सब बताता हूं,हमारे संदर्भ में। कुछ ही दिनों में मां आप से मिलने आएगी।”
खुशी प्रसन्न थी। मन ही मन हंसते घर जा रही थी। स्वराज की मां कब
आएगी। मैं उनकी अच्छी बहू बनूंगी। परिवार में घूलमिलकर रहूंगी।स्वराज को
शिकायत करने का मौका नहीं दूंगी।इन सपनों में खुशी घूलमिल गयी।घर कब आया
पता भी नहीं चला।हर दिन स्वराज के मां का इंतजार करती।बहुत दिन गुजरे,स्वराज की मां नहीं आई।स्वराज भी दिखाई नहीं दिया। ख़ुद को ही समझाती,होंगे कुछ काम में।
एक दिन सुबह-सुबह बस्ती में एक स्री आई। नाम,घर का पता पूछने लगी।मैं दूर
से सब देख रही थी।वह घर की तरफ आती दिखाई दी।मैंने ख़ुद को ठीक ठाक किया।
बेल बजी। मैंने दरवाजा खोला।तो सामने महिला दिखाई दी। मैंने नमस्कार किया।
अंदर बुलाया।चाय पानी की। कुछ समय बाद खुशी ने पूछा, “आपका नाम! क्या काम
है?”
“स्री ने कहा, “ मैं स्वराज की मां।”
“ओह!आप। नमस्कार मां जी।”खुशी ने प्यार से कहा।
- “आप क्या करती है?”
- “स्वराज ने बताया नहीं।”
-“ बताया।तेरे मुंह से सुनना है।”
-“ मैं ग्रेजुएट हूं। लेकिन....”
- “लेकिन क्या?बताओ।”
- “मैं किन्नर हूं।”
- “ तेरी मेरे बेटे से शादी...यह सोच भी कैसे सकती है।”
- “हम दोनों एक-दूसरे से प्रेम करते हैं। साथ रहना चाहते है।”
- “यह कभी संभव नहीं।”
- “आखिर क्यों मां जी?”
- “हम ठहरे बड़े खानदान के। तू है की….”
- “इसमें मेरा क्या कसूर।आप तो तृतीय पंथियों के लिए कार्य करती हैं।और विचार ऐसे।”
- “विचार,कार्य छोड़ दो। मैं क्या कहती हूं,गौर से सूनो। मेरे बेटे के ज़िंदगी से दूर जाने के लिए तूझे क्या चाहिए?”
- “मां जी,मुझे स्वराज चाहिए। और कुछ नहीं।”
- “उसे छोड़कर,कुछ भी !”
- “मां जी,आप जैसे कहेगी,वैसे मैं रहूंगी। मुझे आपके बेटे से अलग मत कीजिए। मैं उसके बिना जी नहीं सकती।”
- “तू सब कुछ करेगी,मेरे परिवार और उसके लिए।लेकिन मेरे बेटे को पिता होने का सुख कभी नहीं दे सकती।”
यह सुनकर खुशी कुछ देर नि:शब्द रही।उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था।सिर्फ स्वराज के मां तरफ देखती रही।बेहोश हुई।घर में शांतता फैल गई,जैसे घर में कोई मरा हो।कुछ देर बाद स्वराज की मां चली गई।
मां शादी को अनुमति देगी या नहीं,यह सवाल स्वराज को सता
रहा था।घर पर अकेला था वह,चिंता में डूबा। इतने में घर के बाहर गाड़ी की
आवाज आई।वह जाग गया। खिड़की से बाहर देखा,तो मां की गाड़ी दिखाई दी। कुछ
समय बाद मां ने बेल बजाई। स्वराज ने जल्द से दरवाजा खोला।मां कुछ भी न बोले
हॉल में जाकर बैठ गई। चेहरे पर गुस्सा था। स्वराज ने कहा, “मां पानी लाऊ।”
-“ कोई जरूरत नहीं।”
-“मां,आप शांत हो जाइए।मुझसे कोई गलती हुई?”
-“तुम से नहीं,मुझ से हुई,संस्कार देने में।”
-“मां क्या हुआ? साफ-साफ बताईए।”
-“तुझे लड़की नहीं मिली,प्रेम करने।”
-“मां,मुझे पता था,आप ऐसे ही बोलेगी।इन कारणवश बताया नहीं था मैंने।”
-“स्वराज,दूसरी लड़की से शादी कर।”
-“नहीं! मैं उसी से शादी करूंगा। अन्यथा किसी से नहीं।”
-“परिवार की इज्जत मिट्टी में मिलानी है तुझे,यही ठान लिया है न।”
-“ मां,तुझे जो समझना है समझ। मैं कोई गलत कार्य नहीं कर रहा।”
-“तुझे शादी उसी से करनी है,तो घर से निकल जा। कभी चेहरा मत दिखाना मुझे।मेरी मृत्यु हो जाएगी,तब भी मत आना।”
-“मां, ख़ुद का ख्याल रखना। हो सके तो मुझे माफ़ करना क्योंकि मैं तूम्हारे नज़र में गुन्हेंगार हूं।”
स्वराज घर से निकल पड़ा,खुशी के बस्ती की तरफ। पैदल। समय रात का था।दो
बजे घर पहुंचा। दरवाजा खटखटाया। देर से दरवाजा खुला। सामने स्वराज देखकर
खुशी घबरा गई। उसे लगा कि स्वराज मां से झगड़ा करके ही आया है। उन्हें अंदर
लिया। पानी दिया। कुछ सम के पश्चात खुशी ने पूछा, “क्या हुआ?इतनी रात
आप...”
-“खुशी,मैंने जो सोचा था वैसे कुछ नहीं हुआ। मां ने शादी को नकारा। मैं
तुमसे शादी करना चाहता हूं,इसी वजह से,मैं मां का घर छोड़कर आया हूं।”
- “यह आपने अच्छा नहीं किया। मां को दु:खाना नहीं चाहिए था।”
-
“ मेरे पास दूसरा कोई रास्ता नहीं था। मैं घर छोड़कर आया हूं,मां के प्यार
को नहीं।सब ठीक ठाक होने के पश्चात घर जाऊंगा।खुशी,आपकी अनुमति हो,तो हम
कल कोर्ट मॅरेज करेंगे।”
- “जो आपको सही लगे।”
दोस्तों की सहायता से शादी हुई।ज़िंदगी की नई शुरुआत की।किराए के घर
में रहने लगे। कुछ वर्ष बाद स्वराज डाक्टर बना। दूसरों के अस्पताल में जॉब
करने लगा।खुशी ने भी आगे की पढ़ाई जारी रखी। कालांतर से बैंक में शाखा
प्रमुख पद पर विराजमान हुई। काम से समय निकालकर तृतीय पंथियों के लिए
निरंतर कार्य करती रही। कार्य में स्वराज भी सहयोग देता रहा।देखते- देखते
दोनों ने बहुत प्रगति की। स्वराज ने ख़ुद का अस्पताल बनाया। खुशी ने तृतीय
पंथियों के लिए “समानता ट्रस्ट”नामक संस्था की स्थापना की।वहां कई तृतीय
पंथी रहने लगे। जिन्हें कोई स्वीकार नहीं करता,उन्हें समानता ट्रस्ट
स्वीकारता था। छूट्टी के दिन खुशी वही रहती।
खुशी के शादी को दस वर्ष हुए थे ।घर
में संतान न होने से खुशी दुःखी रहने लगी।किसी को बता भी नहीं पाती। एक
दिन स्वराज से हिम्मत करके कहने लगी, “ज़िंदगी में संतान आवश्यक है।आपको
कभी नहीं लगा,संतान हो।”
-
“खुशी,समाज में अनेक स्रिया है,जो बच्चें को जन्म नहीं दे सकती,स्री होकर
भी।तू दुःखी क्यों होती है।तेरी शरीर रचना ही ऐसी है। तू जन्मता: संतान
देने में असमर्थ हैं,इसमें तूम्हारा क्या दोष। हम अनाथालय से संतान
लाएंगे,वह भी लड़की। माता-पिता का दायित्व निभाएंगे।”
-“आप
बहुत समझदार है। साथ ही परिवर्तन वादी भी! मैं समाज की चौख़ट में कैद
थी।मेरी जैसी अनेक हैं।कई परंपरा ने गुलाम बनाया था मुझे,अंधश्रद्धा के
नाम पर। आपने सामाजिक चौख़ट तोड़कर, मुझ से शादी की। ख़ुद के पैरों पर मुझे
खड़ा किया।व्यक्तित्व को पहचान दिलाई।आज मैं जो कुछ हूं,आपके खातिर।”
खुशी,मुझे जो अच्छा लगा,मैंने किया। मुझसे पहले भी कई लोगों ने तृतीय
पंथियों से विवाह किया है, इसमें नया कुछ नहीं।यह समय की मांग है। समाज की
मानसिकता बदलनी चाहिए। मुझे आप जैसे कई व्यक्तियों का सहारा बनना है।
उन्हें काबिल बनाना है।भले ही समाज की मानसिकता न बदले,मैं निरंतर कार्य
करूंगा।
भविष्य में तृतीय पंथियों को समाज में मान-सम्मान मिलेगा। उन्हें उनके
अधिकार मिलेंगे। तृतीय पंथियों को संविधान ने अधिकार देने के बावजूद भी
समाज अधिकार क्यों नहीं दे रहा। इसे जिम्मेदार कौन है? और ऐसा क्यों हो रहा
हैं...?
संक्षिप्त परिचय
नाम:- रामेश्वर महादेव वाढेकर
जन्म:- 20 मई,1991
जन्मस्थान:-ग्राम-सादोळा,तहसील- माजलगांव, जिला-बीड, महाराष्ट्र
शिक्षा:-एम.ए.,(हिंदी)एम.फिल्., सेट,(कर्नाटक) सेट,नेट,पी.जी.डिप्लोमा,पी-एच. डी.(कार्यरत) आदि।
लेखन:- चरित्रहीन,दलाल,सी.एच.बी.इंटरव् यू,
लड़का ही क्यों?, अकेलापन, षड़यंत्र, शहीद, अग्निदाह आदि कहानियां विभिन्न
पत्रिका में प्रकाशित।भाषा, विवरण, शोध दिशा, अक्षरवार्ता, गगनांचल,युवा
हिन्दुस्तानी ज़बान, साहित्य यात्रा, विचार वीथी, डिप्रेस्ड एक्सप्रेस आदि
पत्रिकाओं में लेख तथा संगोष्ठियों में प्रपत्र प्रस्तुति।
संप्रति:- शोध कार्य में अध्ययनरत।
चलभाष् :-9022561824
ईमेल:-rvadhekar@gmail.com
पत्राचार पता:-हिंदी विभाग,डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय,औरंगाबाद – महाराष्ट्र, पिन -431004
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