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सोमवार, 26 जून 2023

महेश कुमार केशरीे की कविताएं

 (1)कविता

अब  लगता है , कि ये पूरी दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी ...! 
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सुना है , धरती पर तीन 
चौथाई खारा पानी है..और 
समुंदर का जलस्तर भी लगातार 
बढ़ रहा है..

धीरे - धीरे हमारे तटीय क्षेत्र गायब होते
जा रहें हैं ..
एक समय के बाद बंबई बिला जायेगा...

आदमी ने कभी नहीं सोचा कि 
इस धरती पर जो  तीन चौथाई खारा पानी...है ..
वो  
आखिरकार क्यों है ..?

क्यों , मीठे पानी के
सोते सूखते जा रहें हैं ...?
क्यों... सूखती जा रही है 
बूढ़ी ..गंडक और यमुना..
क्यों सूखती जा रही है ..
हमारी संवेदनाएँ ...
 स्त्रियों को लेकर ...! 

सभ्यता के शुरूआती दिनों से ही 
स्त्रियाँ लगातार रोए जा  रही है .. !
इनके रोने से ही ये समुंदर बने हैं...!

उनके रोने से ही मीठे जल के सोते सूखते  जा  हैं..
और इन स्त्रियों के 
 लगातार रोने से ही हमारे समुद्र लगातार 
बढ़ रहे हैं....

सुना है ,  ये जो खारा पानी है ..वो
स्त्रियों का दु:ख है ....
जो .. पृथ्वी पर तीन चौथाई 
समुंदर के तौर पर पड़ा है...

स्त्री दु:खों को पी जाती है ..
बहुत बुरे वक्त में जो कि बहुत जल्द
ही आदमी का आयेगा 
तब ,  शायद 
खारे पानी की तरह ये तीन
चौथाई दु:ख भी पी जाती हमारी स्त्री ...!

लेकिन , अब लगता है , कि ये पूरी दुनिया 
एक दिन साबुत खारे पानी में डूब जायेगी 

क्योंकि आजकल एक नयी कवायद 
चल पड़ी है ...
स्त्री को हिस्सों में काटकर फ्रिज 
में रखने की कवायद....
फिर ... दु:खों को पीने वाली स्त्री 
इस धरती पर कहाँ बचेगी   ?
जो , सोचेगी .. हमारे संकट या अस्तित्व के बारे में...!
उस समय ये जो धरती का तीन चौथाई दु:ख है
उसको कौन पियेगा ? 
नीलकंठ की तरह ...!
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(2)कविता
धरती पर के मौसम
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मौसम और ऋतुओं के चक्र
को मैं नहीं मानता... 
ये सब बेमानी बातें हैं 
मैं , नहीं मानता किसी आवृत्ति 
को 

समय के चक्र या दुहराव
को मैं नहीं मानता ..
और , ना ही मैं मानता हूँ 
मौसम वैज्ञानिकों की भविष्यवाणियाँ ...

मुझे ये 
सब बेकार की
की बातें  लगतीं हैं ..!

मेरा मानना  है कि 
धरती पर के  सारे मौसम 
 स्त्री 
से जुड़े हैं...

जब वो हँसती है , 
तो वसंत आता है ..
वातावरण  में एक मादकता 
सी छा जाती  है ..
फूलने लगते हैं,  फूल 
गालों पर छाने लगती है 
मुस्कन...
और
हर तरफ केवल खुशियाँ ... 
ही खुशियाँ दिखाई देने लगतीं हैं
सचमुच जब स्त्री हँसती है 
तो वसंत आ जाता है .!

स्त्री जब उदास  और 
बहुत दु:खी होती है तो
पतझड़ आ जाता है ...!
पेंड़ भी स्त्री के दु:ख से 
उदास हो जाता है ! 
तो , गलने लगता है 
स्त्री के दु:ख में.. 
और उसकी  शाखों से पत्ते गायब हो जाते हैं ..
मानों कि वे स्त्री के उदासी से दु:खी हों ..

स्त्री ...
जब ठठाकर हँसती है तो
तो , वैसाखी आती है.... 
घर - आँगन अन्न से भर 
जाता है ...
चारों ओर मँगल गान बजने 
लगते हैं ... 
और लोग मनाने लगते हैं
लोहड़ी का त्योहार. ..

स्त्री  जब रोती है..
तो सैलाब आ जाता है ...
बाढ़ .. बीमारी..
प्राकृतिक आपदायें ...
स्त्री के रोने से ही आती हैं ...
इसलिये दुनिया को अगर 
बचाना है ,  आपदाओं-विपदाओं 
से तो स्त्री को  हमेशा खुश रखो...!
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सर्वाधिकार सुरक्षित 
महेश कुमार केशरी 
मेघदूत मार्केट फुसरो 
बोकारो झारखंड 
पिन-829144
(3)कविता 
दु:ख

ईश्वर ने पृथ्वी बनाने 
से पहले दु:ख बनाया था ! 
और उसके बाद बनाया 
स्त्री को !
ताकि, स्त्री पृथ्वी के दु:ख को
 समझ सके !

(4)कविता 
दु:ख
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ईश्वर ने पृथ्वी बनाने 
से पहले दु:ख बनाया था ! 
और उसके बाद बनाया 
स्त्री को !
ताकि, स्त्री पृथ्वी के दु:ख को
 समझ सके !
महेश कुमार केशरी
मेघदूत मार्केट फुसरो 
बोकारो ( झारखंड)  
पिन -829144


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