सतीश कुमार नारनौंद
बलिया छ: फुट लम्बा,सांवला रंग,सुडौल व गठिले शरीर का इंसान था।
उसकी पत्नी पार्वती बड़ी धार्मिक प्रवृत्ति की (आठवीं पास)औरत थी ।उनके दो
बच्चे थे। लड़के का नाम वंश और लड़की का नाम वंशिका था। पार्वती रंग-रूप
में हूर के समान थी।वह गौर वर्ण,मध्यम कद,हिरणी के समक्ष नयन,लंबी केश राशि
तथा गहरे डिम्पलों से युक्त मुस्कान की मल्लिका थी।ऐसा लगता था मानो
विधाता ने बिल्कुल फुर्सत में इस अद्भुत देवी का सृजन किया हो। पार्वती कभी
भी किसी के साथ लड़ कर नहीं चली। धार्मिक प्रवृत्ति की होने के कारण वह
बड़ों का आदर,अपनी हम उम्र की औरतों से प्रेम व छोटे बच्चों से स्नेह रखती
थी। मोहल्ले के सभी आदमी व औरत पार्वती का उसके श्रेष्ठ गुणों के कारण
सम्मान करते थे। बलिया अपने परिवार के साथ खुशी-खुशी जीवन व्यतीत कर रहा था
।उसकी सबसे बड़ी कमी थी उसकी-अनपढ़ता,जिसका उसे सारा जीवन मलाल रहा।
बलिया, ठाकुर जी की जमीन पर बटाई पर खेती करता था। बलिया बड़ा
पुरुषार्थी और परिश्रमी व्यक्ति था । वह आज के काम को कल पर नहीं छोड़ता
था।
जब उसके जमींदार,ठाकुर जी के बच्चे छोटे
थे और वह बसों में चढ़कर स्कूल जाते थे तो उनको देखकर बलिया बड़ा प्रसन्न
होता था। ठाकुर जी की लड़की अर्पिता तो पढाई में बड़ी तेज़ थी। ठाकुर जी के
बच्चे बलिया के बच्चों के हमउम्र थे परंतु अपनी हसीयत के अनुरूप वंश और
वंशिका गांव के राजकीय विद्यालय में पढ़ते थे लेकिन थे बड़े
संस्कारी,होनहार व पढाई में तेज। अपने गुरुजनों का सम्मान, कर्तव्यनिष्ठा
तथा शिक्षा के महत्व को दोनों बच्चों ने अपने माता पिता से सीखा था। दोनों
बच्चे विद्यालय में अपनी-अपनी कक्षाओं में हमेशा प्रथम रहते।सभी अध्यापक भी
दोनों बच्चों पर गर्व करते थे।
एक बार किसी
समाजसेवी संस्था ने, उपमंडल स्तर पर एक शैक्षिक प्रतियोगिता का आयोजन किया।
इसमें ठाकुर की लड़की अर्पिता तथा बलिया की पुत्री वंशिका ने भी भाग लिया।
अंतिम समय में वंशिका केवल 2अंको से प्रतियोगिता में प्रथम रह कर 11000
हजार का ईनाम जीत गई। अर्पिता दूसरे स्थान पर रही।बलिया का परिवार व सारा
मोहल्ला बड़ा खुश था।सबने मिलकर बेटी को सम्मानित किया। बलिया व पार्वती
खुशी के मारे सारी रात सो नहीं पाये। खुशी के आंसू पोंछते हुए बलिया ने
पार्वती से कहा "पार्वती आज विधाता की दया से,मेरी वह फसल तैयार हुई
है,जिसको मैं ठाकुर के साथ बांट नहीं सकता।
उधर
ठाकुर को वंशिका का प्रतियोगिता में प्रथम आना व अपनी बेटी का पिछड़ना पच
नहीं रहा था। वह वंशिका को निजी स्तर पर नीचा दिखाने में जुट गया। सबसे
पहले ठाकुर ने बलिया को बंटाई पर दिये गए खेतों को आधा कर दिया तथा खेती की
अपनी शर्तें बढ़ा दी। मजबूरी में बलिया ने खेत छोड़ दिया। यहीं ठाकुर
चाहता था।
पिछले दो महीने से वंश बीमारी के कारण
बिल्कुल कमजोर हो गया था। बलिया ने अपने सामर्थ्यानुसार उसके इलाज में कोई
कसर नहीं छोड़ी परंतु एक दिन काल ने वंश को अपने अंचल में छुपा लिया। अब
बलिया बिल्कुल टूट चुका था।उसके पास अब पैसे का भी कोई सहारा नहीं था।वंश
के रूप में उसका दायां हाथ कट चुका था,गरीबी,समय की मार तथा परिस्थितियों
ने उसकी कमर तोड़ दी।बेटे के रूप में हृदय में लगी चोट को भूल ही नहीं सका
और एक दिन उसको भी विधाता ने अपनी गोद में ले लिया। अब तो मानों परिवार पर
मुसीबतों का पहाड़ ही टूट पड़ा।
पार्वती व वंशिका का
संसार ही उजड़ गया। ठाकुर को भी इसका पता लगा। वंशिका से बदला लेने का भी
ठाकुर के पास अच्छा अवसर था।जब किसी का राम रुष्ट होता है तो सभी दिशाएं
अंधकारमय हो जाती हैं। हिन्दू धर्म की मान्यतानुसार मृतक की अस्थियों को
गंगा में प्रवाहित करना पवित्र माना जाता है परंतु पार्वती के पास पैसे
नहीं थे। मौक़े का फ़ायदा उठाकर ठाकुर ने अपनी गाड़ी से वहां ले जाने की
बात कहकर, लोगों की सहानुभूति भी ले ली। ठाकुर का शैतान जाग उठा और उसकी
नजर तो वंशिका के चढ़ते यौवन पर थी।
तीन दिन बाद बलिया की अस्थियों को लेकर पार्वती, वंशिका व ठाकुर हरिद्वार
में गंगा घाट के लिए गाड़ी से निकले। रास्ते में गाड़ी खराब होने का बहाना
बना कर ठाकुर ने देर कर दी। संस्कार क्रिया लेट होने पर, ठाकुर ने रात को
गाड़ी चलाने में असमर्थता जताई। न चाहते हुए भी विवश पार्वती ने अपनी बेटी
के कहने पर ठाकुर के साथ रात को गंगा के किनारे धर्मशाला में रुकने की बात
माननी पड़ी।कई दिनों से थकी हारी पार्वती को नींद आ गई। मौके का फायदा
उठाकर ठाकुर वंशिका का कपड़े से मुंह बंद कर,मानवता की सारी सीमाएं पार कर
गया। शैतान ने आज कन्या की अस्मत को तार-तार कर दिया।रोते हुए वंशिका जब
अपनी मां को जगाने गई तो पार्वती के प्राण पखेरु उड़ चुके थे।नि:शब्द
रात्रि में पवित्र गंगा घाट पर इस कुकृत्य का गवाह स्वयं परमात्मा तथा
वंशिका की सिसकियां थी।
जिला हिसार हरियाणा
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