आज के रचना

उहो,अब की पास कर गया ( कहानी ), तमस और साम्‍प्रदायिकता ( आलेख ),समाज सुधारक गुरु संत घासीदास ( आलेख)

मंगलवार, 1 नवंबर 2022

निर्णय

                   // निर्णय //

           तीन-चार बरस ही हुए थे संजना को ससुराल आये कि सास-ससुर काल-कवलित हो गये। पति रमेश पर मित्र संगति का बुरा असर पड़ा। वह भटक गया। सारे अवगुण उसमें समा गये। फिर

घर का सारा जिम्मा संजना पर आ गया। अब राहे-ज़िंदगी पर कदम रखते हुए वह घर-परिवार की गाड़ी अकेली खींचने लगी।
          अब तो रमेश अपनी बुरी आदतों के चलते स्वयं से ही पूरी तरह छिन गया। कुंठा उस पर पूरी तरह हावी हो गयी। संजना पर चारित्रिक लांछन तक लगाने लगा। आज उसने आधी रात को शराब के नशे में संजना से खूब मारपीट की। संजना पूरी तरह टूट गयी। दु:ख का पहाड़ गिर गया उस पर; क्योंकि किसी औरत की आबरू अपने ही पति के द्वारा उछाली जाय, इससे ज्यादा बदनसीब औरत दुनिया में कोई नहीं हो सकती। इसीलिए तो संजना नशे में धुत्त पति व अपने सोते हुए तीन बच्चों को छोड़कर घर से निकल गयी।
          घनी अँधेरी रात को संजना रेल्वे लाइन पर खड़ी थी। हृदय का दुख-दरिया उफान पर था। आँखें लबालब थीं। उसे मौत का इंतजार था। तभी एक समीपस्थ गाँव से एक गीत की स्वर-लहरियाँ उसके कानों को छू गयी-
              "मत रो... मत रो....
               मत रो...आज राधिके 
               सुन ले बात हमारी
               तू सुन ले बात हमारी
               जो दुख से घबरा जाये 
               वो नहीं हिंद की नारी
               मत रो... मत रो....।"
           फिर संजना ने अपने दाएँ हाथ से अपनी साड़ी का पल्लू बाएँ कंधे पर फेंका। उंगलियों से आँसू पोंछे। सर के केश सम्हाले। घर की ओर चल पड़ी। 
           उस रात को आसमान के तारों ने संजना को इस तरह पहले कभी नहीं देखा था।
             -----//-----
टीकेश्वर सिन्हा "गब्दीवाला"
घोटिया-बालोद (छत्तीसगढ़)
सम्पर्क : 9753269282.      

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें