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गुरुवार, 10 नवंबर 2022

पुनर्विवाह


आदित्य अभिनव, उर्फ डॉ. चुम्मन प्रसाद श्रीवास्तव
पात्र परिचय –


लड़का - आधुनिक , पढ़ा-लिखा नौजवान , प्रगतिशील विचारों का लेकिन अनुशासित ।
बहू ( लड़की ) – सफेद साड़ी ( विधवा ) पढ़ी-लिखी , सुसंस्कारित , आधुनिक एवं प्रगतिशील लेकिन भारतीयता के रंग में रंगी ।
अवस्था – 24-27 वर्ष ।
लड़की का ससुर – रोबदार , आधुनिकता एवं प्रगतिशीलता के समर्थक , हृदय मानवीय गुणों से ओत-प्रोत।
अवस्था- 60-63 वर्ष ।
लड़का का पिता – सामान्य नागरिक , असमंजस की स्थिति में रहने वाला व्यक्ति।
अवस्था – 60-64 वर्ष ।
लड़का की माँ – पुरानी सोच की घरेलू महिला , पुरानी परम्पराओं को मानने वाली , दकियानूसी विचार।
अवस्था – 56-57 वर्ष ।

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प्रथम दृश्य
           [ मध्यमवर्गीय परिवार का आँगन , लड़की ( बहू ) का ससुर कुर्सी पर बैठा है ( दु:खी –चिंतित ) साथ में एक स्टूल पर विधवा बहू बैठी है ( दु:खी –उदास) ]
सूत्रधार – आइए आप सब को ले चलते हैं एक ऐसे परिवार में जहाँ अपने इकलौते पुत्र के असामयिक मृत्यु के बाद एक प्रगतिशील पिता सोच-विचार में निमग्न है। आइए देखते हैं नई सोच की नई किरण को -- --
बहू – नहीं ! नहीं ! पिता जी ! नहीं - - - ऐसा मत कहिए - - मत कहिए - - मैं आपके साथ ही रहूँगी – मैं अपने मायके या और कहीं नहीं जाऊँगी - - - मैं यहीं रहूँगी -- - - आपकी सेवा करुँगी - - आप मुझे इससे वंचित न करे – न करे - - - पिता जी -- - ।
ससुर- बहू ! तुम मेरी चिंता क्यों करती हो ? --- मैं तो अपना जीवन अब गुजार चुका - - मुझे तो अब तुम्हारे जीवन को लेकर चिंता है - - - ; तुम्हारा अभी पूरा जीवन पड़ा है - - अभी - - पूरा जीवन - - पूरा जीवन - - बहू - - - पूरा जीवन - - - ।
बहू – नहीं - - - पिता जी ! नहीं - - ऐसा नहीं हो सकता ; यदि मैं चली जाऊँगी तो आपके बुढ़ापा का सहारा कौन होगा - - कौन होगा - - सहारा पिता जी । आप यदि बीमार हो गए तो कौन करेगा आपकी सेवा - - -- नहीं पिता जी आपका बुढ़ापे का शरीर है – दो घूँट पानी देने के लिए भी तो कोई नहीं बचेगा-- - मुझे आप अपने से अलग मत कीजिए - - - पिता जी - - मत कीजिए - - मत कीजिए - - - ( रोती है )
ससुर – देखो -- -बेटी ! तुम मेरी चिंता मत करो - - - मत करो - - मैं अपना थोड़ा-सा बचा-खुचा जीवन किसी भी तरह गुजार लूँगा - - गुजार ही लूँगा - - - ( कुछ सोचकर दृढ़ निश्चय से ) हाँ - - - हाँ - - बेटी ! मैंने फैसला कर लिया- - कर लिया फैसला - - - तुम्हारे नये जीवन की शुरुआत के लिए - - - तुम्हारे जीवन में फिर से वसंत लाने के लिए -- - मैं बढ़ाऊँगा कदम - - - और समाज में नई पहल की शुरुआत करूँगा - - नई पहल का - - - नई पहल का - - - ।

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व्दितीय दृश्य

[ एक मध्यमवर्गीय परिवार का कमरा , सोफा लगा है , मेज पर चाय , बिस्कुट और नमकीन रखा हुआ है । सोफा पर लड़की ( बहू ) का ससुर बैठे हैं ; उनके सामने लड़का , लड़का का पिता और माँ बैठी हैं ]
लड़की ( बहू ) का ससुर – हाँ ! तो आपकी क्या राय है ? क्या आप अपने लड़के की शादी के लिए तैयार हैं मेरी लड़की से यानी बहू से - - - - ।
लड़का की माँ - ( आश्चर्य से देखते हुए ) आ-- -! मैं कुछ समझी नहीं -- - आपकी लड़की यानी बहू - - - लड़की - - बहू - - - बहू - -- लड़की क्या मतलब -- ?
लड़की ( बहू ) का ससुर - मेरा मतलब साफ है , यह बहू मेरे इकलौते पुत्र की विधवा है। मेरे पुत्र की असामयिक मृत्यु छ: महीने पहले आतंकी बम विस्फोट में हो गई थी - - - और तब से बेचारी निरपराध बहू अपने जीवन के वसंत से दूर एकाकी और अभिशप्त जीवन जी रही है । अब मैं इसके जीवन में फिर से वसंत लाना चाहता हूँ - - - इसका पुनर्विवाह कर - - - तो आप ही बताइए हुई न यह हमारी बेटी - - लड़की - - प्यारी—प्यारी बिटिया - - - ( एक संतोष का भाव )
लड़की की माँ ‌- ( अपने पति की ओर देखकर ) नहीं- - नहीं - - इस लड़के से मेरे बेटे की शादी नहीं होगी - - - कतई नही – कतई – नहीं - - ।
लड़की ( बहू ) का ससुर – ( लड़के के पिता की ओर मुखातिब होकर ) देखिए , मेरी लड़की हिंदी साहित्य से एम. ए. है तथा स्थानीय विद्यालय में हिंदी की आध्यापिका भी। ये रहा - - बायो-डाटा -- - - ; शील, स्वभाव और सौंदर्य की प्रतिमुर्ति है मेरी बहू। यह रही तस्वीर।
लड़के का पिता – ( तस्वीर और बायो-डाटा देखते हुए ) सुंदर - - - बहुत सुंदर - - हमे तो लक्ष्मी एवं सरस्वती की सम्मिलित स्वरूप प्रतीत होती है आपकी लड़की- - - ( लड़का और लड़के की माँ की तरफ देखते हुए ) -- -लेकिन - - - ।
लड़की ( बहू ) का ससुर – लेकिन -- -लेकिन क्या ? यहीं न कि मेरी बहू का यह दूसरा विवाह होगा -- - ; हाँ - - तो आप जरा सोचिए , परमपिता परमेश्वर ने सृष्टि के संचालन के लिए नर और नारी दोनों का सृजन किया। दोनों को समान बनाया तो फिर इस समाज में जब पुरुष को दूसरी - - तीसरी - - - चौथी- - - यहाँ तक कि अनेक शादियाँ करने का हक इसी समाज में सृष्टि के दूसरे पक्ष स्त्री को क्यों नहीं - - - क्यों नहीं - - - आखिर क्यों नहीं - - ।
लड़के की माँ – ( खींझते हुए) लेकिन यह तो सदियों से चली आ रही परंपरा है और हमें इसे मानना ही होगा - - - ; नहीं - - - नहीं - -हम तो परंपरा नहीं तोड़ सकते - - - नहीं तोड़ सकते - - ; आखिर समाज भी तो कोई चीज होती है। हम अपने लड़के की शादी आप के यहाँ नहीं कर सकते - - - नहीं कर सकते - - - - ।
लड़की ( बहू ) का ससुर – ( व्यंग्य के साथ ) नहीं तोड़ सकते - - नहीं तोड़ सकते , तो फिर बने रहिए कूपमंडूक - - - विश्व में फैल रही आधुनिकता एवं विज्ञान की प्रगति से अपने आपको छुपाकर रखिए कि कहीं प्रगति के चकाचौध से आपकी आँखें न चौधिया जाए। यदि यहीं सोचा होता राजा राममोहन राय , महर्षि दयानंद सरस्वती , महादेव गोविंद रानाडे , केशवचंद्र सेन , स्वामी विवेकानंद , महात्मा गाँधी , पं. जवाहरलाल नेहरू ने तो आज हम विश्व के विकसित देशों में शामिल होने के लिए प्रयत्नशील नहीं होते। सामाजिक कुरीतियों और कुप्रथाओं के अंधेरे जंगल में ही भटकटे रहते - - - भटकते रहते - - -- ( अफसोस जताते हुए ) पता नहीं कब जागेगा हमारा यह समाज - - - कब जागेगा - - - कब - - ?
[अचानक लड़का सोफा से उठ खड़ा होता है और लड़की के ससुर की ओर देखते हुए]
लड़का - अंकल ! कब जागेगा नहीं - - - जाग चुका है -- - जाग चुका है आज का युवा - - - जाग चुका है – अंकल - - जाग चुका है - - - चलिए मैं तैयार हूँ आपकी बहू यानी लड़की से शादी के लिए -- - ।
[ लड़की का ससुर प्रसन्न हो लड़के को गले लगा लेता है ]
लड़की ( बहू ) का ससुर – शाबास बेटा ! शाबास ! तुमसे यहीं उम्मीद थी --- -और अब मुझे पूरा विश्वास है कि तुम्हारी यह पहल समाज को नई दिशा देगी - - - नई दिशा - - - नई दिशा - - -
[ पर्दा गिरता है ]

सूत्रधार ( नेपथ्य से ) –


सड़ी गली इस परंपरा को अब यहीं पर रोकिए,
रोकिए अब गंध आती , बिलबिलाती कुप्रथा ।
कुछ लोग हाथों में लियें हैं आज भी ठेके तमाम ,
छटपटाती नारी को अब टूटने से रोकिए ।
छा गई है लालिमा , सूरज उगा विज्ञान का
आइए स्वागत करें , पग बढ़ा नई सोच का ...
पग बढ़ा नई सोच का . . ..



[समाप्त]

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पता 
सहायक आचार्य (हिंदी) भवंस मेहता महाविद्यालय , भरवारी कौशाम्बी (उ. प्र. ) पिन – 212201
मोबाइल 7767041429 , 7972465770
ई –मेल chummanp2@gmail.com

जन्म - 30 जून 1970
प्रकाशन : ‘परिकथा’, ‘पाखी’ ,‘ लमही’ ,’कथादेश ‘ , ‘गगनांचल’, ‘ स्पर्श ’ , ‘ विश्वगाथा ’ , ‘ सुसंभाव्य ’, ’सेतु( पीट्सवर्ग, अमेरिका) , ‘ साहित्यसुधा ‘, ‘ अनुसंधान’ , अनुशीलन’ , ‘ विपाशा’ , ‘हस्ताक्षर’ , सहित्यकुंज’ ‘ प्राची ’ ‘ साहित्यप्रभा’ , ‘हरिगंधा ’ , ‘परिंदे’ आदि विभिन्न राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय पत्र –पत्रिकाओं मे रचनाएँ प्रकाशित ।
काव्य संग्रह - “ सृजन के गीत ‘’ ( 2017) ,कहानी संग्रह – “ रुका न पंछी पिंजरे में ‘’ ( 2022)
सम्पादित पुस्तकें – ‘ समकालीन हिंदी की श्रेष्ठ कहानियाँ ’ ( 2022 ) , ‘विश्व कि श्रेष्ठतम कहानियाँ ’ ( 2022)
, आकाशवाणी – बीकानेर , जोधपुर और गोरखपुर से कविता का प्रसारण , दूरदर्शन – मारवाड़ समाचार , जोधपुर से कविता का प्रसारण
सम्पादन सहयोग – “ मानव को शांति कहाँ ‘’ (मासिक पत्रिका) (2004- 2008 तक उप संपादक )
सम्मान – साहित्योदय सम्मान (2020) , लक्ष्यभेद श्रम सेवी सम्मान(2020)





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