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बुधवार, 19 अक्टूबर 2022

दो कविताएं

 

        मांगन मिश्र " मार्त्तण्ड ",
     
1. आया शुभ दिन
सज गए थे
बादल नभ में
आया शुभ दिन।

प्यासी धरणि
दरक-दरक
बूँद-बूँद को तरस गयी थी
माँ-बाबू के
तीरथ मन को
वक्त -नागिन डस गयी थी
जी रही थी 
क्वारी बेटी
वक्त गिन-गिन।

सपनों के मेघ
लगे बरसने
कि सपन-वन
हुए घने
मजदूरिन के
कजरी-स्वर
मुदित ये तन-मन
कीच सने

त्योहार बने मन
बाजे ताक धिना- धिन।
.…..............…...........

2. कहीं दूर चले

हादसों के शहर में
मन विकल
कहीं दूर चलें।

पार्क बलात्कारी
सड़कों पर
राहजनी का तांडव
लचर व्यवस्था
लोकतंत्र में
गढ़ा गया
अनोखा ढब

पसरी चिंता की खाई
कब तक हम
और छलें ?

झुग्गी-झोपड़ी
उजड़ गयी
चला खौफ का बुलडोजर
भींगी पलकें
उखड़ी साँसें
चुप हैं
ले सूखे अधर

जुग-जुग से हम
जले-जले
अब कब तक
और जलें ?

हर गली में
हर मोड़ से
गंध बारूद की
एकता और अपनत्व पर
अब धुंध गहरी
छा रही
बता दे कोई
विकट समय में
हम कैसे ढलें ?  
 
प्रधान संपादक, ' संवदिया ',
साकेत, बंगाली टोला, 
फारबिसगंज-854318 (अररिया), बिहार, मो० : 9973269906
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