आज के रचना

उहो,अब की पास कर गया ( कहानी ), तमस और साम्‍प्रदायिकता ( आलेख ),समाज सुधारक गुरु संत घासीदास ( आलेख)

शुक्रवार, 19 अगस्त 2022

कृष्ण सुकुमार दाे गजलें

 

कृष्ण सुकुमार

1-
बात करते हुए माथे पे वो बल डालता है
बात ही बात में जज़्बात मसल डालता है
मुझमें ख़ामोशियों के साथ चला आ रहा यूँ
मेरे एकांत में ये कौन ख़लल डालता है
कुछ यूँ लगता है मेरे दर्द से बहते हुए वो
अर्घ देते हुए जैसे कोई जल डालता है
मैं फ़क़त ख़्वाब हूँ, इस ख़्वाब की ताबीर है तू
यानी मैं फूल हूँ, जिसमें कि तू फल डालता है
इक लहर उसकी मेरे दिल से गुज़र जाये तो फिर
वो मेरे दर्द की तासीर बदल डालता है
मैं तो हर लफ़्ज़ में इक लापता शय ढूँढता हूँ
वो कोई और है जो मुझमें ग़ज़ल डालता है
2-
ये ख्वाब-वाब और ज़ियादा न पालिए
लंबा सफ़र है, रास्ते छोटे निकालिये
अब तक रही है बह्र से ख़ारिज ये ज़िंदगी
बेशक रदीफ़ोक़ाफ़िये हमने निभा लिए
इतना बँटा कि शेष मैं फिर कुछ न बच सका
किरदार ख़ुद में जो जिए, वो सब बचा लिये
खामोशियों ने चुन लिया मेरे मिज़ाज को
अब शोर आप चाहें तो बेशक उछालिए
बारिश के साथ भीगते रहना पड़ा हमें
आँचल मिला तो बैठकर तन-मन सुखा लिए
बाज़ार से घर आ गये दामन बचाके हम
इक आप पूछते हो कि कितने कमा लिये

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें