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शुक्रवार, 19 अगस्त 2022

बस भी कर ऐ ज़िन्दगी

बस भी कर ऐ ज़िन्दगी, अब बहुत हो चुका है।
दिल टूटा सह गया, चोटें खाई सह गया।
जहां ले चली किस्मत, नदी जैसा बह गया।
हर ख़्वाब टूटा, मैं फिर भी मुस्कुराता रहा।
दर्द में भी मैं, बस प्यार के नगमें गाता रहा।
मेरा चैन ओ सुकून न जाने कहाँ खो चुका है।
बस भी कर ऐ ज़िन्दगी, अब बहुत हो चुका है।
अपने सारे रूठ गए, मैं अकेला हो गया।
दो लोग जहां मिले मुझको, मेला हो गया।
इतना अकेला हूँ कि खुद से बातें कर रहा हूँ।
मौत का इंतजार है, तुझसे इतना डर रहा हूँ।
सूख गई हैं आंखे कि दिल इतना रो चुका है।
बस भी कर ऐ ज़िन्दगी, अब बहुत हो चुका है।
हर कोशिश की मैंने किस्मत से लड़ने की।
इन मुशीबतों को हराकर, आगे बढ़ने की।
लेकिन मेरी कोशिश किस्मत के आगे हार गई।
सबको मौत मारती है, मुझे ज़िन्दगी मार गई।
जिस्म के जर्रे जर्रे में मौत का आगाज हो चुका है।
बस भी कर ऐ ज़िन्दगी, अब बहुत हो चुका है।
संदीप कुमार ( शायर बेपरवाह)

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