आज के रचना

उहो,अब की पास कर गया ( कहानी ), तमस और साम्‍प्रदायिकता ( आलेख ),समाज सुधारक गुरु संत घासीदास ( आलेख)

गुरुवार, 2 जून 2022

तेरे लब यूँ मुस्कुराना जानते हैं

 

तेरे लब यूँ मुस्कुराना जानते हैं।
हर ख़ुशी का ये ठिकाना जानते हैं।
हुस्न से कोई भला कब जीत पाया,
हम कहाँ इतना बहाना जानते हैं।
ये हुनर भी आपने सीखा कहीं से,
रोते बच्चों को हँसाना जानते हैं ?
वक़्त से कोई बड़ा मरहम नहीं है,
हर निशाँ वो भी मिटाना जानते हैं।
रोज़ ही तो होटों पे सुर्ख़ी है तेरे,
शाम जैसे शामियाना जानते हैं।
हमने पूछा सबसे है जन्नत कहीं पर?
सब तेरा ही आशियाना जानते हैं।
*** प्रो जयराम कुर्रे

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें