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मंगलवार, 11 जनवरी 2022

प्रतिबिंब भी धुंधला गया

चांदनी की बात थी
पर क्यूं अंधेरा छा गया ,
सुर्ख आंखो की नमी पर
अश्क क्यूं बरसा गया .....!
उम्र भर के इस सफर में
ये कैसा मोड़ आ गया ,
दो कदम की जिंदगी थी
क्यूं इस कदर भरमा गया …!
पाषाण को पानी बनाना
मेरा एक अहसास था ,
पर तेरा अहसास क्यूं
मुझको भी यूं पथरा गया ...!
एक सीमा तक सिमट
सकती थी मेरी मुश्किलें ,
बात जब आसान थी
क्यूं मुश्किलें बढ़ा गया…!
हर तरफ की राह ने
मुझसे पलट कर ये कहा ,
रास्ता जो तुम चले थे
मुड़कर फिर से आ गया ...!
चांदनी में घुल गए है
बहुतों के अहसास पर ,
मेरे अहसासों का तो
प्रतिबिंब भी धुंधला गया …!
Sunita Gupta

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