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मंगलवार, 11 जनवरी 2022

हम फ़िर मिलेंगे !

डॉ.मंजू वर्मा

दुनिया की बेरुखी से दूर
रात की ख़ामोशी में एकाकी
तुम्हारे ख्यालों में गुम
तुम्हारी यादों की चादर से
मुंह ढापें आंसू बहाना
जहन में उठती पीड़ा की
प्रचंड लहरों का बहाव
शांत कर जाता है....!
तो कभी दिनभर की थकान से
अनजान निद्रा भी
बेपरवाह सी
विरहाग्नि में तपती
दीदार-ए-मोहब्बत को तरसती
आंखों से कोसों दूर
मन में गहन संशय भर,
रात की समय सीमा को
पार कर स्मृतियों के पन्ने
उलट पुलट कर जाती है!
पल-पल गुजरते वक्त के साथ
अधीर होता मन
उमर के इस पड़ाव पर आकुल
सोचता उत्सुक
बेताब एक ख्वाईश से
कि........'हम फ़िर मिलेंगे!'
बेसब्र है इंतजार से
चंचल होता सोचकर
आतुर होता प्यार में
कि......'हम फ़िर मिलेंगे!'
प्यार से... !!!
(भूतपूर्व प्रोफेसर, यू .एस.ओ.एल. पंजाब विश्विद्यालय, चंडीगढ़)

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