कभी हिम्मत दे जाती है, कभी ताकत दे जाती है
गिरूँ जब खाके मैं ठोकर, ये मुझको फिर उठाती है
मुसीबत रंग लाती है, मुसीबत रंग लाती है
है अपना कौन पराया, सभी कुछ ये बताती है
हक़ीक़त चाहे जैसी हो,मगर उसको दिखाती है
मुझे मुझसे मिलाती है, नया परिचय कराती है
नई ख़ूबी, नई ख़ामी, ये बेहतर ढूंढ लाती है
नई राहें, नई मंज़िल,नया जीवन दे जाती है
हंसा के ये रुलाती है, रुला के फिर हंसाती है
ना ये होती तो क्या होता, हर एक बंदा बड़ा होता
खुदा ही एक मालिक है, सबक सबको सिखाती है
जो लड़ते हैं मुसीबत से, उन्हें अनुभव दे जाती है
जो थक कर हार जाएं तो, हुकूमत ये चलाती है
कड़क इसके कदम लेकिन, ये एक दिन हार जाती है
मगर फिर जाने से पहले, ये कुछ ना कुछ सिखाती है
है प्यार इसको कांटो से, तभी ज़ख्मो की साथी है
बहुत कुछ छीन ले फिर भी, मिटा के फिर बनाती है
डॉ वैशाली शर्मा
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