जीवन में फूल कम बेसुमार काँटे हैं
हम हुए हैं खोखले दीमक ने चाटे हैं
खा-खा कर रिश्वत हुजूर हो गए हैं मोटे
कई दिन ही हमने खाली पेट काटे हैं
होती नहीं मयस्सर बिछाने को चटाई
जमीन ही हमारी पलंग और खाटें हैं
रखते हैं क़ानून को वे अपनी ज़ेब में
उल्टा ही चोर कोतवाल को डांटे हैं
बड़ों के बड़प्पन का, है क्या कहना यारों
खजूर उनके सामने हो गए नाटे हैं
बजवाते हैं ताली एकता के नाम पर
सियासतदां ने हमें टुकड़ों में बाँटे हैं

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