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रविवार, 16 जनवरी 2022

मालिन्यवाहिनी नदी

विनय कुमार शुक्ल
 
गंगा के समानांतर एक *कृत्रिम नदी*
*गंगा सदैव के लिए कैसे स्वच्छ हो जाए।*वर्षों से मन में तैर रहा था एक विचार, उसे कागज पर दिया है उतार।
"प्रदूषित जल को बहाकर ले जाने वाली कृत्रिम नदी का निर्माण करना।" कालांतर में भाषा के मुख-सुख सिद्धांत के अनुसार मालिन्यवाहिनी नदी का नाम *मालिनी* ही रह जाए तो आश्चर्य न होगा।
इसके निर्माण से बड़े-बड़े सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांटों की आवश्यकता नहीं रहेगी। उनके संचालन में लगने वाली बिजली और रखरखाव, प्रबंधन का खर्च भी बचेगा। अधिकारी और कर्मचारी की भी आवश्यकता समाप्त होगी। गंगा की स्वच्छता के प्रति जब कोई सरकार कम जागरूक होगी या बजट का अभाव होगा या एस.टी.पी.अपनी पूरी क्षमता से काम नहीं कर पाएंगे तब भगवती भागीरथी में भयंकर रूप से प्रदूषित जल गिरता रहेगा और प्राचीन काल की भाँति स्वच्छ गंगा केवल हमारी कल्पना में ही रहेगी।
*इसका उपाय जितना साधारण सा है उतना ही वृहद और ऐतिहासिक सिद्ध हो सकता है।*
हमें खुदाई करके एक *नई नदी* बनानी है। माँ गंगा के *समानांतर* परंतु इतनी दूरी रखते हुए कि दोनों का पानी तो क्या नमी भी परस्पर मिलने न पाए। *कहीं* दो सौ मीटर, कहीं पाँच सौ मीटर, कहीं एक किलोमीटर तक की दूरी रखनी होगी आवश्यकता के अनुसार।
इसकी *लंबाई* लगभग माँ गंगा की लंबाई जितनी ही होगी। ऋषिकेश या हरिद्वार जहाँ से नालों का गंदा पानी गंगा जी में गिरने का प्रारंभ होता है वहां से प्रारंभ करके गंगासागर में समुद्र में मिलने तक यह नदी होगी।
नदी की *चौड़ाई* प्रारंभ से अंत तक उत्तरोत्तर बढ़ती जाएगी क्योंकि इसमें गिरने वाले नालों की संख्या और प्रदूषित जल की मात्रा को अपने में समाते हुए वहन करते हुए मलिन जल को अंततः समुद्र में गिरा देना है।
नदी की *ढाल* प्राकृतिक ढाल के अपेक्षा कुछ अधिक रखनी होगी ताकि प्रवाह बाधित न हो और गाद की समस्या भी न होने पाए।
नदी की *गहराई* केवल वर्तमान ही नहीं अपितु भविष्य का अनुमान करते हुए नदी में मिलने वाले प्रदूषित जल की मात्रा के अनुसार नदी की गहराई रखनी होगी।
गंगा जी के *किस ओर* बनेगी- यह नदी। यह सर्वेक्षण करके देखना होगा कि अधिक नगर या अधिक नाले गंगा जी के पूर्वी किनारे पर हैं या पश्चिमी किनारे पर स्थित है। जिधर अधिक नाले गंगा जी में गिरते हों उसी किनारे पर यह कृत्रिम नदी बनाई जाए ताकि अधिकांश मलिन जल इसमें सरलता से गिराया जा सके। गंगा जी के दूसरे किनारे पर के नालों का पानी इस नदी में गिराने के लिए विशाल भूमिगत पाइपों की सहायता से गंगा जी के नीचे से क्रॉस करते हुए लाना होगा। आवश्यकता के अनुसार कहीं-कहीं नदी के ऊपर से भी पाइप से क्रॉस करके इस नदी में डाला जा सकता है। यद्यपि इसके लिए विद्युतीकृत पंपों का सहारा लेना पड़ेगा।
इस नदी के निर्माण में सड़कों को क्रास करते हुए भारी संख्या में पुल , रेल पुलों की जरूरत पड़ेगी परंतु विशाल और चौड़े मुंह वाले पाइपों को भूमिगत डालते हुए सड़क के नीचे से पाइपों में से इस नदी का पानी आगे निकाला जा सकता है। इस प्रकार से पुलों के निर्माण की आवश्यकता भी समाप्त हो जायेगी।
नदी की खुदाई से निकली मिट्टी वह रेत से नदी के एक किनारे पर सड़क का निर्माण किया जा सकता है। जो यातायात की सुविधा तो बढ़ा ही देगी गंगा जी और इस कृत्रिम नदी के मध्य बाँध का काम करेगी। ताकि स्वच्छ और मलिन जल परस्पर कभी मिल न सकें।
इस नदी की *खुदाई का खर्च* धनदान और श्रमदान से हो सकता है। बड़ी संस्थाएं, संपन्न लोग धन और मशीनों से सहयोग दे सकते हैं। मध्यम और गरीब वर्ग के आस्थावान व्यक्ति कारसेवा करके माँ गंगा की रक्षा में अपना सहयोग दे सकते हैं। इस प्रकार सरकार पर पड़ने वाला आर्थिक बोझ न्यूनतम किया जा सकता है।
इस नदी के बन जाने और वर्षों तक उपयोग हो जाने के पश्चात इसकी तलहटी में गाद जम सकती है। उस *गाद का भी उपयोग* संभव है कि उसे निकालकर चल रहे निर्माण कार्यों में पटाई के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। जैसे ओवर ब्रिज तक जोड़ने वाली सड़क की पटाई में या कहीं एक्सप्रेस वे की पटाई में किया जा सकता है।
मैं अपनी इस *परिकल्पना* पर देश के प्रबुद्ध और चिंतनशील व्यक्तियों से विचार करने का आग्रह करता हूँ कि इसे कैसे साकार किया जा सकता है।
 
 
बलरामपुर, उत्तर प्रदेश।
मो.९८३८२१८६९२
ई-मेल vkshukla.2706@gmail.com

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