जब जीवन में तन्हा हो हम,
हम जाने क्यूं तन्हा हैं हम।
क्यूं मालिक ने तन्हा किया,
क्यूं प्रतिबद्धता से मुक्त किया।
क्या कराना चाहता है वो हमसे,
किस रास्ते लगाना चाहता है।
क्या अपनी शरण में लेना चाहता है,
या अपना सिमरन देना चाहता है।
या कराना चाहता है इस तन से,
सेवा प्राणिमात्र की।
या जीवन को नया आयाम देना चाहता है।
जो दिया है उसने अच्छा ही है,
जो लिया है उसने वो भी अच्छा है।
बस, मन समझ जाए उसके मन की,
वो परमात्मा ही इक सच्चा है।
दीपिका त्रेहान
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