बढ़ती जाए ठंड है, माघ पूस की रात ।
निर्धन तन कंबल बिना, सहे शीत आघात।।1
काँपे तन-मन ठंड से, विकट पूस की रात।
ओले बरसे मेघ है, जैसे रितु बरसात ।।2
रात अँधेरी पूस में , तन को भाय अलाव।
हरने तड़के ठंड को, दहके अनल प्रभाव ।।3
डरावनी है पूस की, काली - काली रात।
पशु पक्षी मानव सहित, काँपे तरु की पात।।4
रातें अब तो पूस की, बदले निज तासीर।
देख "पर्वणी" ठंड में, ग्रीष्म तपन की पीर।।5
पद्मा साहू "पर्वणी"
खैरागढ़ जिला राजनांदगांव छत्तीसगढ़
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