आज के रचना

उहो,अब की पास कर गया ( कहानी ), तमस और साम्‍प्रदायिकता ( आलेख ),समाज सुधारक गुरु संत घासीदास ( आलेख)

सोमवार, 3 जनवरी 2022

पूस की रातें

बढ़ती जाए ठंड है, माघ पूस की रात ।
निर्धन तन कंबल बिना, सहे शीत आघात।।1

काँपे तन-मन ठंड से, विकट पूस की रात।
ओले बरसे मेघ है, जैसे रितु बरसात ।।2

रात  अँधेरी पूस में ,  तन को भाय अलाव।
हरने तड़के ठंड को, दहके अनल प्रभाव ।।3

डरावनी है पूस की, काली - काली रात।
पशु पक्षी मानव सहित, काँपे तरु की पात।।4

रातें अब तो पूस की, बदले निज तासीर।
देख "पर्वणी" ठंड में, ग्रीष्म तपन की पीर।।5

पद्मा साहू "पर्वणी"
खैरागढ़ जिला राजनांदगांव छत्तीसगढ़

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें