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सोमवार, 3 जनवरी 2022

तीन गजलें - नवीन माथुर पंचोली



थोड़ी-थोड़ी खुशियाँ पाना अच्छा है।
रोते-रोते ख़ुश हो जाना अच्छा है ।


यूँ तो कितने ख़्वाब सुहाने देखे हैं,
इक सपने का सच हो जाना अच्छा है।


जीवन में सौगातों की हद मत पूछो,
थोड़ी में भी मन समझाना अच्छा है।


आप अकेले राह जहाँ अंधेरी हो,
इक जुगनू का पीछे आना अच्छा है।


हमनें गीतों से जो दर्द जगाया है,
आँखें उनकी नम हो जाना अच्छा है।


2


जब सोचो तब चाँद पे जाया जा सकता है।
सपनों से भी दिल बहलाया जा सकता है ।


वैसे तो हम हद में अपनी ही रहते हैं ,
इसमें रहकर भी कुछ पाया जा सकता है।


यूँ तो हम अपने नाम से जाने जाते हैं,
ख़ुद पर भी थोड़ा इतराया जा सकता है।


जब अपनों को अपने लायक न पायें,
गेरों को भी तब अपनाया जा सकता है।


खोना- पाना तो क़िस्मत की बातें हैं,
सच भी कोई तो झुठलाया जा सकता है।


साथ हमारे हो जब कोई हमदम अपना,
खुलकर दिल का हाल सुनाया जा सकता है।


3
मन को बच्चों जैसा रखना पड़ता है।
जब अपनों से रिश्ता रखना पड़ता है।


आसाँ हो सबसे अपना मिलना जुलना,
रस्ता सबसे सीधा रखना पड़ता है।


जब रातों में नींदे पास बुलाती है,
आँखों में इक सपना रखना पड़ता है।


पंछी की आजादी जब छिन जाए तो,
पिंजरे से समझौता रखना पड़ता है ।


जब आँखें अपनी बूढ़ी हो जाती है,
उन पर मोटा चश्मा रखना पड़ता है ।


हमको अपनी बातें जब मनवाना हो,
रुख़ पर थोड़ा गुस्सा रखना पड़ता है।
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नवीन माथुर पंचोली
अमझेरा धार मप्र
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