राघवेन्द्र नारायण
आदमियत यदि नहीं तो, आदमी का धर्म क्या है
यदि नहीं है दया दिल में,तो फिर वह सत्कर्म क्या है--१
सभी धर्मों का है मकसद, खूबसूरत करना जीवन
यदि नहीं सत्य आचरण तो,जिन्दगी का मर्म क्या है--२
जिनमें है नहीं यह समझ,हर जीव होता प्राणवान
जीवों की हिंसा से धरती पर , गर्हित अधर्म क्या है--३
जानवर पक्षी या जलचर,पेड़ - पौधे नदी सागर
सबके भीतर एक जैसी ,उठती हुई तरंग ,क्या है--४
एक ही है यह प्रकृति, ब्रह्माण्ड में हर तरफ व्यापक
धर्म मजहब पंथों में फिर, छिड़ रही यह जंग क्या है--५
दे रही कुदरत हमें ,सबकुछ कितनी उदार होकर
आदमी के भीतर फिर, दानशीलता से शर्म क्या है--६
कब सीखेगा आदमी ,रहना सुकूँ से इस जमीं पर
एक ही पूर्वज सभी के, तो अलग सम्बन्ध क्या है--७
धर्म यदि देता है शिक्षा,जिये इन्साँ सब्र रखकर
आदमी के दिल में गहरा,घुस चुका यह द्वन्द्व क्या है--८
नफरत के कौवे हैं उड़ते, छाये आशंका के बादल
हवा में यह उड़ रही, तीखी असह्य दुर्गन्ध क्या है--९
खो गई इन्सानियत को, लाना वापस खोजकर है
अन्यथा इस सभ्यता का, तुम बताओ,अन्त क्या है!--१०
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