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तान्या सिंह |
रो लेते हैं आँखें बिछाते हुए
थकन इतनी है ज़िन्दगी से उसे
है मायूसी ज़िन्दा बताते हुए
बहुत चोट लगती है आवाज़ को
दिवारों में रस्ता बनाते हुए
मेरा दिल नहीं लग रहा जीने में
तेरा साथ झूठा निभाते हुए
मज़ा लेना ही पड़ता है जख़्म का
दवा शायरी को बनाते हुए
तेरी बद्दुआ का असर इतना है
मुझे डर है पौधा लगाते हुए
2
जब भी हयात आब को बिसयार देती है
माँ की दुआ इलाह को ललकार देती है
रुलाये ख़्वाब भी ना कोई उसके बच्चे को
जब माँ सुलाती है तो वोए थुथकार देती है
पल भर में भूल जाता है वो अपने दर्द को
मज़ा लेना ही पड़ता है जख़्म का
दवा शायरी को बनाते हुए
तेरी बद्दुआ का असर इतना है
मुझे डर है पौधा लगाते हुए
2
जब भी हयात आब को बिसयार देती है
माँ की दुआ इलाह को ललकार देती है
रुलाये ख़्वाब भी ना कोई उसके बच्चे को
जब माँ सुलाती है तो वोए थुथकार देती है
पल भर में भूल जाता है वो अपने दर्द को
माँ देख कर यूँ बच्चे को पुचकार देती है
बेरोज़गारी तो यूँ ही बदनाम फिरती है
फिलहाल रोजगार भी अफ़कार देती है
कुर्सी के आस.पास अगर पहुँचे अर्ज़ियाँ
तो मेज पे दबा भी ये सरकार देती है
तान्या सिंह
गोरखपुर,
उत्तर.प्रदेश
बेरोज़गारी तो यूँ ही बदनाम फिरती है
फिलहाल रोजगार भी अफ़कार देती है
कुर्सी के आस.पास अगर पहुँचे अर्ज़ियाँ
तो मेज पे दबा भी ये सरकार देती है
तान्या सिंह
गोरखपुर,
उत्तर.प्रदेश
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