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रविवार, 10 जनवरी 2021

जब माँ मिट्टी हो गई

नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

मैंने रोया था उस दिन जीभर के
जब निकली थी घर से तुम्हारी अर्थी
लोग मेरे आँसू पोछते रहे
ढाँढस बंधाते रहे
समझाते रहे कि
चुप हो जा बेटा
आखिर जाना ही पड़ता है एक दिन सबको
मिट्टी की इस काया को मिट्टी में मिलना ही है

मैंने पुस्तकों में पढ़ा था
पाँच तत्वों से मिलकर बना नश्वर है यह शरीर
मग़र मुझे उस मृत देह में 
मिट्टी नहीं केवल माँ नज़र आती थी

मुझे बचपन में माँ समझाती थी कि
मिट्टी माँ होती है
वही हमें पालती-पोसती है
रोज सुबह मिट्टी को प्रणाम किया करो

मिट्टी माँ होती है
इस दर्शन को तब नहीं समझ सका था
सोचता था मिट्टी और माँ में भला कैसा साम्य..?
समझा उस दिन 
जब माँ सचमुच मिट्टी हो गई।

नरेन्द्र कुमार कुलमित्र   9755852479

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