तिहार के खुशी मा मगन मनखे हा तिहार मनाए के बाद थोकिन थिराए के उदिम करे बर लागथे। काबर कि तिहार के उत्साह के मारे थकासी घलो दूरिहाए रहिथे। जेन दिन ले तिहार लकठाए रहिथे अउ जतिक दिन ले तिहार रहिथे काहीं चीज के सोर-खबर नइ राहय। अइसने तिहार मनाए के पाछू 8-10 संगवारी मन के दल हा बस्ती के चउॅंक मा बइठ के तिहार पुरान के बखान कर-करके तिहार के खुशी ला महसूस करत रहिन। सबके अपन-अपन किस्सा चलत राहय, एक ले बढ़के एक। ठउँका वतकी बेर एक आदमी कहिथे, ‘‘तिहार हा तो बने-बने मनागे संगवारी हो फेर देखव न कचरा के मारे बस्ती हा अटागे हावय। कोन जनी ये सफई करइयामन के तिहार कब सिराही ते।’’
ओखर गोठ ला सुनके बाकी संगवारीमन हा घलो कांव-कांव करे बर धर लेथें। कउनो हा सफई करइयामन ला गारी देवय ता कउनो हा ऊँखरमन के शिकायत करे के गोठ करे लागय। सबो झन के कांव-कांव ला एक झन संगवारी हा बड़ देर के मिटकाय सुनत रहिथे। जब ऊँखरमन के कांव-कांव करइ हा कमतियाय बर धर लेथे ता वो कहिथे, ‘‘तिहार का हमरे मन भर के आय?’’
बाकी संगवारीमन ओखर केहे के मतलब समझ नइ पावय ता बाकी संगवारीमन ला समझावत कहिथे, ‘‘तिहार हमर, तिहार के उत्साह हमर ता तिहार मा बगरे कचरा हमर होना चाही न। अब भई तिहार के बाद थिराए के बुता हमन भर थोरे करबो वहूमन ला थिराए के जरूरत हे।’’
‘‘ता ऊँखर आवत ले बस्ती के कचरा ला अइसने परे राहन देवन?’’
‘‘अरे! परे काबर राहन देबो, सब लानव अपन-अपन घर ले सफई के हथियार अउ शुरू हो जाथन।’’
आइडिया सबो झन ला बने ढंग ले जँच गिस हे। ओमन ला सफई करत देखिस ता बस्ती के बाकी मनखे घलो ऊँखरमन के संग दे बर आ गिन हे अउ देखते-देखत सबो बस्ती के तिहरहा कचरा हा साफ होगे।
दिलीप कुमार निषाद
दुर्ग
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