*बिकास के रद्दा मं*
चापलूसी मं महुँ रोज चोंच
डुबाये रहितेंव ।
इमान के रोटी छोड़ झूठ के मलई खाये रहितेंव ।।
झूठ लबारी ल हाँ जी हांँ जी कहे रहितेंव ।
तभे बिकास के रद्दा मं महूँ आघू रहे रहितेंव ।।
गजब मजा उड़ातेंव बड़का लबारी बोल के ।
अपन झोली भरतेंव खूब झोल-झोल के ।।
पांँच ल पच्चीस दस ल सौ कहे रहितेंव ।
तब बिकास के रद्दा मं महूँ आघू रहे रहितेंव ।।
संझा-बिहनिया रात-दिन फोकट तलवा चांटतेंव ।
हर मउका मं हार धरे साहब के आघू-आघू नांचतेंव।।
घूस लेना अउ हक मरई ल धरम कहे रहितेंव ।
तब बिकास के रद्दा मं महूँ आघू रहे रहितेंव ।।
कच्चा नेवान मं कोनो पक्का घर नइ बनाय ।
चापलूसी करईया कखरो भाग नइ जगाय ।।
ये नीत अउ नियाव के पाठ नइ पढ़ें रहितेंव ।
तब बिकास के रद्दा मं महूँ आघू रहे रहितेंव ।।
दूजराम साहू*अनन्य*
निवास- भरदाकला (खैरागढ़)
जिला --खैरागढ़ छुईखदान गंडई
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें