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गुरुवार, 24 अक्टूबर 2024

इतनी सी बात


पुरखों का घर द्वार बेचकर, 

शहर में बंगला बनाओगे|

हो सकता है बेशकीमती होगा, 

लेकिन इतनी सी बात बता दो, 

गांव का सुकून कहाँ से लाओगे---


संस्कारक्षम विद्यालय को छोड़कर, 

बच्चों को अंग्रेजी भाषा में पढ़ाओगे|

निःसंदेह बच्चा ज्ञानवान हो भी जाए, 

लेकिन इतनी सी बात बता दो, 

उसमें सभ्यता कहाँ से लाओगे---


अपने माँ-बाप को यूँ ही छोड़कर, 

सास- ससुर का चरण दबाओगे|

शायद नाम,दाम भी खूब कमा लो, 

लेकिन इतनी सी बात बता दो, 

माँ बाप का कर्ज कैसे चुकाओगे--


पद,पैसा और अधिकार पाकर, 

तुम इंसाफ़ को भी खा जाओगे|

अपनी झूठी रौब सबको दिखाओगे, 

लेकिन इतनी सी बात बता दो, 

अपने बच्चों से नजर कैसे मिलाओगे--


बेशक पैसों के दम पर खरीद सकते हो, 

भौतिक सुविधा और छप्पन भोग|

रोज-रोज मालपुआ भी उड़ाओगे, 

लेकिन इतनी सी बात बता दो, 

सुखी रोटी का स्वाद कहाँ से लाओगे--


सचमुच बड़े नादान होते हैं,वे लोग, 

जो कहते हैं जिंदगी का सुख अमीरी में है|

मैं तो सिर्फ़ इतना कहता हूँ साहब, 

मानव जीवन का सच्चा सुख तो, 

दरिद्र नारायण की सेवा और फकीरी में है---

रचनाकार:--श्रवण कुमार साहू, "प्रखर"

शिक्षक/साहित्यकार, राजिम, गरियाबंद (छ.ग.)

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