पुरखों का घर द्वार बेचकर,
शहर में बंगला बनाओगे|
हो सकता है बेशकीमती होगा,
लेकिन इतनी सी बात बता दो,
गांव का सुकून कहाँ से लाओगे---
संस्कारक्षम विद्यालय को छोड़कर,
बच्चों को अंग्रेजी भाषा में पढ़ाओगे|
निःसंदेह बच्चा ज्ञानवान हो भी जाए,
लेकिन इतनी सी बात बता दो,
उसमें सभ्यता कहाँ से लाओगे---
अपने माँ-बाप को यूँ ही छोड़कर,
सास- ससुर का चरण दबाओगे|
शायद नाम,दाम भी खूब कमा लो,
लेकिन इतनी सी बात बता दो,
माँ बाप का कर्ज कैसे चुकाओगे--
पद,पैसा और अधिकार पाकर,
तुम इंसाफ़ को भी खा जाओगे|
अपनी झूठी रौब सबको दिखाओगे,
लेकिन इतनी सी बात बता दो,
अपने बच्चों से नजर कैसे मिलाओगे--
बेशक पैसों के दम पर खरीद सकते हो,
भौतिक सुविधा और छप्पन भोग|
रोज-रोज मालपुआ भी उड़ाओगे,
लेकिन इतनी सी बात बता दो,
सुखी रोटी का स्वाद कहाँ से लाओगे--
सचमुच बड़े नादान होते हैं,वे लोग,
जो कहते हैं जिंदगी का सुख अमीरी में है|
मैं तो सिर्फ़ इतना कहता हूँ साहब,
मानव जीवन का सच्चा सुख तो,
दरिद्र नारायण की सेवा और फकीरी में है---
रचनाकार:--श्रवण कुमार साहू, "प्रखर"
शिक्षक/साहित्यकार, राजिम, गरियाबंद (छ.ग.)
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