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मंगलवार, 22 अक्टूबर 2024

गोवर्धन परब म गुने के गोठ: गाय के पीरा

 गोवरधन परब म गुने के गोठ

*गाय के पीरा*

         पांच दिनिया तिहार दीवाली के छुट्टी म गांव गे रहेवं।दू दिन हर बड़ा मजा लेवत बीत गिस।तीसर दिन गोवरधन तिहार म गाय गरूवा मन के पूजा धजा करे पाछु।बने रोटी पीठा खवाएन। 

          मोर आदत रहीस रतिहा के बेरा खाए पीए के पाछु किंजरे के।ते पाए के मेंहर किंजरे बर निकल  गेवं। किजरत बूलत गांव ले बाहिर शहर के रद्दा म पहुंच गेवं।

       तभे मोर नजर परिस थोरकिन दूरिहा म जुग बुग करत काहिं बरत हे।काए बरत हे तेला जाने बर बिलई पावं धरे मेंहर चुगबुगावत जीनिस कोति गेवं।त देखेवं बिकट अकन गाय गरूवा मन ह सकलाए हें।ओ जमों झन के आंखी ले आंसु ढरकत हे।

     नानपन ले गाय गरूवा संग खेलत कूदत बाढ़े हवं।ते पाय के बिना डराए ओमन के तीर म पहुंच गेवं।मोला देख के ओहू मन न तो चमकिन न डराईन।बस अबक देखत रहिन।मोला लागिस कि ओहू मन ह समझ गिन होहीं कि ए मनखे ह गउ कस सीधवा आए। 

       एक ठिन नानचून बछिया ल पुचकारत में हर ओखर महतारी  करा पूछेवं -गऊ माता, आज तो गोवरधन तिहार आए। लोगन तुमन ल बने धो पोंछ के सजा धजा के ,पूजा करत हें ।हलूवा पूरी,खिचरी खवावत हें।अइसन दिन म तुमन ल का दुख परगे हे।एमेर सकला के रोवत हव। 

      मोर बात ल सुनके एक ठिन मोटहा करिया मरकनहा बइला ह मोला हुमेले कस करिस। तहां ले बोलिस-काके गोवरधन पूजा?बस एके दिन के देखावा आए। मनखे के तो दू दांत होथे खाए के अलग देखाए के अलग। सही म हमर मान गउन करना होतिस त आज तो घर म राखतिन।अपन सुवारथ ल पूरा करे बर पूजा करके दूध म गिरे माछी कस फेर बाहिर कोति खदेड़ दीन ।देखत तो हस जम्मो झन एमेरन सकलाए अपन दुःख-पीरा ल गोठियावत हन।

      ओखर गोठ ल सुनके दुसर लाली गाय ह अपन पूंछी ल ठाढ़ करके बोलिस-जतका के खवाए नई हो ओखर ले जादा तो पाके आमा कस चुहक डारथो।मोर बछरू हर आजे बिहनिया मोर गोरस ल पीयत रहिस त कसाई कस रुप धरे मालिक ह ओखर कोवंर कान ल धरके चेचियावत दूरिहा म लेग गीस।अउ बां.. बां.. करत कलपत मोर पिलवा ल गड़त गेरवां म कसके बांध दीस।नानकुन मोर बेटवा बछरु के पीरा ल आंखी भर भर देखे हवं।

    हहो दीदी बने कहत हस ओ।इही ल कहिथें हगरी के खा ले फेर उटकी के झन खा। कहत एक ठिन सादा गाय हर बोलिस-  तोरे कस मोरो मालिक हर महा कसाई आए।बड़े बगुनिया भर भर रोज संझा बिहनिया दूध देथवं। तभो ले ललचहा हर अउ जादा गोरस उतारही कहिके कोन जनि का दवा ल सूजी म भरथे अउ हब्ब ले मोर देहें म गोभ देते।ओ बेरा मोर जीव हर कल्ला जाथे ओ।

   ओखर पीरा ल सुनके एकझिन पढ़े-लिखे कस दिखत बछवा हर बोलिस-  दाई जेन सुजी के तें हर बात करत हस ओला "डाइक्लोफेनिक इंजेक्शन" कहिथें।सही म ओ दवा हर गाय सहित मनखे मन बर तको बिख  बरोबर नुकसान दायक होथे।अउ ते अउ जेन गाय भईंस ल रोज रोज ए दवा हर लगथे तेखर मरे के पाछु ओखर हाड़ा -गोड़ा- मांस ल खवइया जीव जन्तु जइसे कि गिधवा-

कउंवा,कुकूर- कोलिहा मन ह तको मर खप जाथें। इही पाए के  आजकाल कतको अइसन चिरई मन ह नंदावत जात हें। अउ मनखे मन ह 

भईंसासुर लहुटत जात हें।

           ओमन के बात ल सुनके महूं हर चिंता म पर गेंव।फेर बोलेवं-धीरज धरव गऊ माता हो।अति के अंत होबे करथे।मोला भरोसा हे मनखे के मति हर तको बदलीही।गाय गरूवा मन संग गोठबात ल खतम करके घर लहूटत मने मन सोचेवं  दुनिया के दुरदसा अउ झन होवन दे भगवान।मनखे ल सद्बुद्धि देदे।

*विजय मिश्रा 'अमित'*

अग्रोहा सोसायटी रायपुर।

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