अच्छा हुआ जो उल्लू बनाया---
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हे! प्रभु आपको लाख-लाख शुक्रिया,
कि,आपने मुझको उल्लू बनाया|
माँ लक्ष्मी की सवारी बनाकर आपने,
मेरा यह जीवन धन-धन्य बनाया||
अच्छा हुआ कि,मैं कोयल न बनी,
इस जीवन का मूल्य ही भूल जाती|
क्योंकि सुरीली आवाज से गर्वित हो,
शायद मैं अहंकार में फूल जाती||
अच्छा हुआ जो मोर न बनाए,
मैं अपनी रंग रूप में खो जाती|
कभी मेघों को आकर्षित करती,
कभी उनके प्रेम में खो जाती||
अच्छा हुआ मुझको हंस न बनाए,
जो नीर-क्षीर विवेक में अड़े रहती|
इस जग को खूब उपदेश देती पर,
स्वयं कीचड़ बीच में यूँ पड़े रहती||
अच्छा हुआ मुझे कौंआ न बनाए,
रोज भटकते रहती नगर और गाँव,
दो दाने भोजन के खातिर नित्य ही,
करते रहती काँव-कॉंव,काँव-कॉंव||
अच्छा हुआ जो चातक न बनाया,
चाँद के प्रेम को पाने तरसते रहती|
स्वाति नक्षत्र की एक बूंद के खातिर,
मेरे नयनों से अश्रु बरसते रहती||
अच्छा हुआ जो मुझे दिन न सुहाते,
लोगों के कपटी चाल न सह पाती|
मुझे बस रात्रि का अंधेरा ही प्यारा,
मैं दिन में धूर्तों बीच यूँ रह न पाती||
इन हालात में बोलो न नारायण,
तेरी भाव भजन कैसे कर पाती|
अगर उल्लू बनकर मैं न रहती तो,
आपका नित्य दर्शन कैसे कर पाती||
अच्छा हुआ जो उल्लू बनाया,
माँ लक्ष्मी की अकिन्चन दास हूँ|
मेरा सौभाग्य बस इतना ही है,
मैं हरदम लक्ष्मीनारायण के पास हूँ||
रचनाकार:-श्रवण कुमार साहू, "प्रखर"
शिक्षक/साहित्यकार, राजिम, गरियाबंद (छ.ग.)
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