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शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2024

अच्छा हुआ जो उल्लू बनाया

 अच्छा हुआ जो उल्लू बनाया---

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हे! प्रभु आपको लाख-लाख शुक्रिया, 

कि,आपने मुझको उल्लू बनाया|

माँ लक्ष्मी की सवारी बनाकर आपने, 

मेरा यह जीवन धन-धन्य बनाया||


अच्छा हुआ कि,मैं कोयल न बनी, 

इस जीवन का मूल्य ही भूल जाती|

क्योंकि सुरीली आवाज से गर्वित हो, 

शायद मैं अहंकार में फूल जाती||


अच्छा हुआ जो मोर न बनाए, 

मैं अपनी रंग रूप में खो जाती|

कभी मेघों को आकर्षित करती, 

कभी उनके प्रेम में खो जाती||


अच्छा हुआ मुझको हंस न बनाए, 

जो नीर-क्षीर विवेक में अड़े रहती|

इस जग को खूब उपदेश देती पर, 

स्वयं कीचड़ बीच में यूँ पड़े रहती||


अच्छा हुआ मुझे कौंआ न बनाए, 

रोज भटकते रहती नगर और गाँव, 

दो दाने भोजन के खातिर नित्य ही, 

करते रहती काँव-कॉंव,काँव-कॉंव||


अच्छा हुआ जो चातक न बनाया, 

चाँद के प्रेम को पाने तरसते रहती|

स्वाति नक्षत्र की एक बूंद के खातिर, 

मेरे नयनों से अश्रु बरसते रहती||


अच्छा हुआ जो मुझे दिन न सुहाते, 

लोगों के कपटी चाल न सह पाती|

मुझे बस रात्रि का अंधेरा ही प्यारा, 

मैं दिन में धूर्तों बीच यूँ रह न पाती||


इन हालात में बोलो न नारायण, 

तेरी भाव भजन कैसे कर पाती|

अगर उल्लू बनकर मैं न रहती तो, 

आपका नित्य दर्शन कैसे कर पाती||


अच्छा हुआ जो उल्लू बनाया, 

माँ लक्ष्मी की अकिन्चन दास हूँ|

मेरा सौभाग्य बस इतना ही है, 

मैं हरदम लक्ष्मीनारायण के पास हूँ||


रचनाकार:-श्रवण कुमार साहू, "प्रखर"

शिक्षक/साहित्यकार, राजिम, गरियाबंद (छ.ग.)

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