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रविवार, 26 नवंबर 2023

मेरा गांव


जिद्द बेटे बेटी की पूरी करता,
नहीं होते हुए भी ना न करता।
खुद फटे ही जूते कपड़े पहने,
बाप बच्चों को ना नहीं करता।।
समय भले बाप को परखता,
प्यार संजो बाप हृदय रखता।
समय भले ही कठिन कितना,
शान्त भाव रह कुछ न कहता।।
व्यथित मन, प्रदर्शन न किया,
ठोस चेहरे पर भाव न उभरा।।
भले बाधाएं आयी हो डगर में,
बच्चों को कभी कुछ न कहा।।
मां बच्चों से कुछ न कहती थी,
झूठ बोल मां सब ही सहती थी।
भले स्वस्थ शरीर न रहा मां का,
नित्य कर्म मां स्वयं करती थी।।
ममता सारी बच्चों पर लुटाती,
बच्चों को खुद सीने से लगाती।
किसी गलती पर पिट बच्चे को,
खुद आंखों से मां आंसू बहाती।।
मेरा गांव अब शहर हो गया है,
जिन्दगी का दोपहर हो गया है।
न अब पहले सी बातें "हंसमुख"
बच्चों के मन जहर हो गया है।।

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