1
सोचकर बेसवाल रहता हूँ।
बेवज़ह, बेख़्याल रहता हूँ।
हर किसी की निग़ाह है मुझ पर,
इसलिए बेमिसाल रहता हूँ।
परिन्दा हूँ यहाँ- वहाँ अक़्सर,
हर शज़र, डाल-डाल रहता हूँ।
शक़, शिक़ायत,ख़ता,गिले, शिकवे,
भूलकर सब मलाल रहता हूँ।
साथ है आपकी दुआ मेरे,
इसलिए मैं निहाल रहता हूँ।
2
उनसे ही क्या बात छुपाना।
घर तक जिनका आना-जाना।
सच्चाई झुठलाकर फिर क्यों,
झूठी बातों को अपनाना।
बचना हो ग़र बद आदत से,
थोड़ा अपना मन समझाना।
आसाँ होगा दूर सफ़र जब,
रस्ता हो जाना पहचाना।
दिन में जितनी बातें सोची,
तय है कुछ सपनों में आना।
भीतर किसके कितना ग़म है,
चहरा है इसका पैमाना ।
3
आते- जाते कहते - सुनते रहता है।
इस तरहाँ वो मिलते-जुलते रहता है।
आना-जाना रख बादल,दरियाओं का,
सागर ठहरे हाल उफ़नते रहता है।
रोशन हो संसार सभी का यूँ अक्सर,
सूरज सालों-साल सुलगते रहता है।
राह कहीं ठहरे पेड़ों की छाँहों में,
चलते - चलते राही तकते रहता है।
रखता है आभास सभी के आने का,
जो क़दमों की आहट सुनते रहता है।
कहलाता है शख़्स वो सन्त, फ़क़ीरों सा,
जो दुनियादारी से बचते रहता है।
4
रखते हो मन को समझाकर।
ख़ुद से ख़ुद का हाल छुपाकर।
रहना हो महफ़ूज अगर तो,
रहना अपनी हद में जाकर।
अपनाकर आदत बच्चों सी,
रखना सबसे हाथ मिलाकर।
खोया - पाया , हारा - जीता,
जीना तो है सब अपना कर।
उतरा है वो स्वर भीतर तक,
लगता है जो दिल पर आकर।
छूट गए जो बात बनाकर ।
------ नवीन माथुर पंचोली
अमझेरा धार मप्र
पिन 454441
मो, 9893119724
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