हनुमान मुक्त
मिस्टर खन्ना बडे
अच्छे अफसर हैं, जिस ऑफिस में भी होते हैं, कार्मिक बड़े प्रसन्न रहते हैं।
कार्मिकों को प्रसन्न करने के उनमें कुछ गुण विद्यमान हैं। यथा उन्हें
ऑफिस के काम काज के बारे में कुछ भी मालूम नहीं।
वे जब नए-नए अफसर
बने थे तो उनके साथियों ने उन्हें बताया था कि अफसर काम करने के लिए नहीं
बल्कि काम करवाने के लिए होता है। किसी भी महकमे से कोई भी कागज आए उस पर
संबंधित प्रभार का नाम लिखकर चिड़िया (लघु हस्ताक्षर) बैठानी होती है, वह
कौन-से प्रभाग को मार्क करना है, यदि यह देखने में भी दिक्कत आए तो किसी
अंग्रेजी पढ़े-लिखे बाबू को इसकी जिम्मेदारी देकर काम चलाया जा सकता है। वे
अक्षरशः इसकी पालना करते आ रहे है। संबंधित प्रभाग का प्रभारी जो भी काम
करके लाता है और जहां भी ऑफिस की सील लगी हो वहां वे बिना कुछ देखे, सुने
चिड़िया बैठा देते है। ऑफिस बड़े अच्छे ढंग से स्मूथली चल रहा है। उनके पेट
का पानी भी नहीं हिलता, कार्मिक बड़े प्रसन्न है, अफसर उन्हें कभी नहीं
डांटता, वे कब आ रहे है, कब जा रहे है, इसके बारे में भी किसी प्रकार की
हील-हुज्जत नहीं होती।
मिस्टर खन्ना चिड़िया बड़ी अच्छी बैठाते हैं,
ऐसा लगता है जिसे सचमुच की चिड़िया हो, जब उनके साथियों ने उन्हें बताया था
कि कागज पर सिर्फ चिड़िया बैठानी है तो उन्होंने विधिवत एक पेंटर को घर
बुलाकर चिड़िया बनाने की प्रेक्टिस शुरू कर दी थी, वो तो किस्मत से एक दिन
उनका वहीं साथी उसी वक्त घर पर आ धमका जब वे चिड़िया बनाने की ट्रेनिंग ले
रहे थे।
खन्ना से जब इसके बारे में पूछा तो उन्होंने साफ-साफ बता
दिया कि वे उन्हीं के कहने से चिड़िया बनाने की प्रेक्टिस कर रहे हैं। खन्ना
के भोलेपन पर उन्हें तरस आ गया। उन्होंने पेन्टर को घर भेजने को कहा।
पेन्टर के चले जाने के बाद मिस्टर खन्ना को चिड़िया बैठाने का सही आशय
समझाया।
चूंकि
वे पहले से चिड़िया बनाने की प्रेक्टिस कर चुके थे, इसलिए अब उनके लघु
हस्ताक्षर, चिड़िया जैसे ही लगते है। किसी भी ऊपर या नीचे के ऑफिस में उनका
पत्र जाता है तो चिड़िया की बनावट देखते ही पता चल जाता है कि उनके ऑफिस का
सारगर्भित पत्र है, जिस पर पूरी गंभीरता से ध्यान देना आवश्यक है।
उन्हें
खेल, खेल मैदान, खिलाड़ी किसी के बारे में कोई नॉलेज नहीं है और ना ही वे
किसी प्रकार की नॉलेज अपडेट रखना चाहते हैं। सरकार काफी दिनों से ऐसे ही
अफसर की तलाश में भी। अरसे से खेल विभाग में अफसर का पद रिक्त चल रहा था,
लेकिन कोई योग्य उम्मीदवार अभी तक नजर नहीं आया था।
उनकी कार्यशैली
और योग्यता से प्रभावित होकर उन्हें खेल विभाग में अफसर बना दिया। बहुत
दिनों से सुस्त पड़े ऑफिस में अचानक जान आ गई। सभी कार्मिक उनकी चिड़िया
बैठाने की शैली से अत्यन्त प्रभावित थे।
सभी महकमों में खेल कराने
के आदेश जारी हो गए, जो बजट देना था वह भी जारी कर दिया। खेलों के नियम,
कायदे-कानून सभी नियमानुकूल थे, उन्हीं नियमों के आधार पर उन्हें खेलों का
आयोजन करना था। प्रत्येक प्रकार के खेल में प्रथम, द्वितीय, तृतीय टीमों को
पुरस्कृत करना था। सभी को ताकीद कर दिया कि कुछ भी हो जाएं, लेकिन किसी ना
किसी खेल में टीम अवश्य भाग लेनी चाहिए।
अन्य
महकमों में भी खेलों के इसी प्रकार के विशेषज्ञ थे। कहीं भी खेल मैदान और
खिलाड़ी नहीं थे। खिलाड़ियों के लिए प्रतिदिन जारी बजट भी ऊंट के मुंह में
जीरे के समान था। प्रतिदिन दूध, नाश्ता, दोनों समय के भोजन के लिए मात्र
पचास रुपए। बिना खेल मैदान और खिलाड़ियों के खेल भी होने थे और खिलाड़ियों का
चयन भी।
मातहत ऑफिस के कार्मिकों ने इस बाबत् मार्गदर्शन मांगा।
ऊपर से जवाब आया कि खेल का आयोजन आपसी सद्भाव और बंधुता बढ़ाने के लिए किया
जाता है। आपसी समन्वय और सामंजस्य से खेलों का सफल आयोजन कर
कर्त्तव्यनिष्ठ कार्मिक होने का परिचय दें। पत्र की मूलभावना को समझ कर
नियत समय में कार्य कर पालना रिपोर्ट भेजें।
सभी मातहत ऑफिस के
कार्मिक पत्र की मूल भावना को समझ गए। उन्होंने सभी स्थानों से खिलाड़ियों
के आवश्यक दस्तावेज मंगवा लिए। कागजी खाना पूर्ति कर खेलों के आयोजन का
उद्घाटन कर दिया।
वे खिलाड़ियों का कष्ट नहीं देना चाहते थे और ना ही सरकार की खेलों के आयोजन की मंशा को किसी प्रकार की चोट पहुंचाना ही।
जिस
प्रकार ठेकेदार आपसी समन्वय से पूल कर ठेके को बाँट लेते हैं उसी प्रकार
प्रत्येक महकमे से आए टीम प्रभारियों ने आपसी मेलजोल और सद्भाव का परिचय
देते हुए सिक्का उछाल कर विजेता, उपविजेता एवं अन्य स्थानों का चयन कर
लिया। इस बात का पूरा ध्यान रखा गया कि प्रत्येक महकमे और प्रत्येक ऑफिस का
किसी ना किसी खेल में अवश्य प्रतिनिधित्व हो।
नियत समय पर समस्त कागजी खानापूर्ति कर देय बजट को नियमानुसार व्यय कर खेल महकमे की भावना के अनुसार पालना रिपोर्ट भेज दी गई।
खिलाड़ी
खुश थे, उन्हें बिना खेले ही प्रमाण पत्र मिल गया। खेल महकमा खुश था, उनकी
प्रोग्रेस रिपोर्ट बिना किसी शिकवा-शिकायत के सौ प्रतिशत हो गई। मिस्टर
खन्ना की कार्यशैली और चिड़िया के कमाल के कारण उनको सर्वश्रेष्ठ अफसर का
खिताब प्राप्त हो गया। खन्ना के मातहत कार्मिक प्रसन्न थे। उनका अफसर और
सारा महकमा खुश था।
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