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शुक्रवार, 18 अगस्त 2023

ताबूतसाज़ ( रुसी कहानी )

नरोत्तम नागर
नज़र आते हैं ताबूत हर जगह,
पक चले हैं बाल इस दुनिया के!
- देरझाविन
     ताबूतसाज़ आद्रियान प्रॅखोरोव के घरेलू साज़ - सामान का आखि़री हिस्सा भी गाड़ी पर लद गया और गाड़ी में जुते मरियल घोड़ों की जोड़ी ने चौथी बार बसमन्नाया गली से निकीत्स्काया गली तक का चक्कर लगाया, जहाँ ताबूतसाज़ अपने समूचे घरबार के साथ जा बसा था । दुकान में उसने ताला डाल दिया और दरवाज़े पर एक तख़्ती जड़ दी कि यह घर बिक्री या किराये के लिए ख़ाली है,और अपने नये निवास-स्थान की ओर पैदल ही चल दिया । एक मुद्दत से इस घर पर उसकी नज़र थी और भारी रकम देकर उसे ख़रीदा था । लेकिन अब, उस समय जब कि बूढ़ा ताबूतसाज़ इस घर की पीली दीवारों के निकट पहुँच गया था, यह जानकर उसे बड़ा अजीब मालूम हुआ कि उसका हृदय ख़ुशी से छलछला नहीं रहा है । अनजानी दहलीज़ लाँघकर नयी रिहाइश में पाँव रखते समय, जहाँ अभी तक सब कुछ अस्त - व्यस्त और उलटा - पलटा था, उस जर्जर दड़बे के लिए उसके मुँह से एक आह निकल गयी जिसे छोड़कर वह आया था । अठारह साल उसने वहाँ बिताये थे, और व्यवस्था इतनी सख़्त थी कि एक सींक भी इधर से उधर नहीं हो सकती थी । लेकिन यहाँ सभी कुछ अस्त - व्यस्त था । उसने अपनी दोनों लड़कियों और घर की नौकरानी को सख़्त - सुस्त कहा और ख़ुद भी उनका हाथ बँटाने में जुट गया। जल्द ही सब चीज़ें तफरीने से सज गयीं - देव - मूर्ति का आसन, चीनी के बरतनों की अलमारी, मेज़, सोप़फे और पलंग - ये सब पिछले कमरे के विभिन्न कोनों में, अपनी - अपनी जगह पर जमा दिये गये । घर के मालिक का सामान - सभी रंगों और माप के ताबूत, मातमी लबादों - टोपियों से भरी अलमारियाँ और मशालें, रसोई और बरामदे में जमा दी गयीं । दरवाज़े के ऊपर एक साइनबोर्ड लटका दिया गया जिसमें उल्टी मशाल हाथ में लिये हृष्ट - पुष्ट कामदेव की तस्वीर बनी थी और उसके नीचे लिखा था : सादे और रंगीन ताबूत यहाँ बेचे और तैयार किये जाते हैं, किराये पर दिये जाते हैं और पुराने ताबूतों की मरम्मत भी की जाती है। 
     उसकी लड़कियाँ अपने कमरे में आराम करने चली गयीं और आद्रियान ने अपनी नयी रिहाइश का मुआयना करने के बाद, खिड़की के पास बैठते हुए समोवार गरम करने का आदेश दिया । 
     जानकार पाठकों से यह छिपा नहीं है कि शेक्सपीयर और सर वाल्टर स्कॉट, दोनों ने ही मैयत का सामान बेचने और कब्र खोदने वालों को ख़ुशमिज़ाज और बातूनी चित्रित किया है । यह इसलिए कि उनके धन्धे और स्वभाव में भिन्नता दिखाकर हमारे दिमाग़ों को ज़्यादा प्रभावित किया जा सके । जो हो, सत्य के कायल होने के नाते हम उनका अनुकरण नहीं कर सकते, और हमें यह कहना पड़ता है कि हमारे ताबूतसाज़ का स्वभाव उसके मातमी धन्धे के साथ पूर्णतया मेल खाता था । आद्रियान प्रॅखोरोव मुँहबन्द और मोहर्रमी व्यक्ति था । वह बिरले ही अपनी ख़ामोशी तोड़ता था, और सो भी उस समय जब वह अपनी लड़कियों को निठल्लों की भाँति खिड़की से बाहर झाँकते और राह चलतों पर नज़रें डालते देखता, या उस समय जब वह अपने हाथ की बनी चीज़ों के लिए उन अभागों से या भाग्यशालियों से, मौके के अनुसार जैसा भी हो कसकर दाम माँगता था जिन्हें उन चीज़ों की ज़रूरत आ पड़ती थी । सो आद्रियान, चाय का सातवाँ प्याला सामने रखे, खिड़की से लगा बैठा था और सदा की भाँति अपने मोहर्रमी ख़यालों में डूबा था । उसे उस मूसलाधार बारिश की याद हो आयी जो अभी, पिछले सप्ताह, उस समय पड़नी शुरू हो गयी थी जब कि अवकाश - प्राप्त ब्रिगेडियर की अर्थी का जुलूस चुंगी - दरवाज़े में से गुज़र रहा था । नतीजा यह हुआ कि कितने ही मातमी चोग़ों में सिकुड़ने पड़ गयीं, कितने ही मातमी टोपों के किनारे ऐण्डे - बैण्डे हो गये। उसके मातमी कपड़ों के प्राचीन स्टॉक की हालत दयनीय थी, और इसके लिए भारी रकम ख़र्च करने की दरकार थी । उसे उम्मीद थी कि सौदागर की विधवा पत्नी त्रयूखिना के मरने पर सारा घाटा पूरा हो जायेगा। वह बूढ़ी हो चुकी थी, और पूरे एक साल से कब्र में पाँव लटकाये अब - मरूँ अब - मरूँ कर रही थी । लेकिन त्रयूखिना आखि़री घड़ियाँ गिन रही थी राज़गूल्याइ गली में, और प्रॅखोरोव को डर था कि उसके उत्तराधिकारी - बावजूद इसके कि वे उसे वचन दे चुके थे - उसे इतनी दूर से बुलाने का कष्ट नहीं करेंगे, और पास - पड़ोस के किसी ठेकेदार से सब कुछ तय कर लेंगे।
     वह इन्हीं सब विचारों में डूबा था कि यकायक - मानो भगवान ने उसकी पुकार सुन ली हो - बाहर के दरवाज़े को किसी ने तीन बार खटखटाया । ताबूतसाज़ के विचारों का ताँता टूट गया। वह चौंककर चिल्लाया - कौन है ? य्ं तभी दरवाज़ा खुला और एक आदमी - शक्ल - सूरत से जिसे तुरन्त पहचाना जा सकता था कि कोई जर्मन दस्तकार है - भीतर कमरे में चला आया और ताबूतसाज़ के निकट जाकर प्रसन्न मुद्रा में खड़ा हो गया। मुझे माफ करना, प्यारे पड़ोसी,य् टूटी - फूटी रूसी भाषा में उसने कुछ ऐसे अटपटे अन्दाज़ से बोलना शुरू किया कि उसकी याद कर आज भी हँसी रोके नहीं रुकती, मुझे माफ करना अगर मेरे आने से आपको कोई बाधा हुई हो, लेकिन आपसे जान - पहचान करने के लिए मैं इतना उतावला हूँ कि रुक नहीं सकता । मैं मोची हूँ, होत्त्ल्येब शूल्त्स मेरा नाम है, और ठीक सड़क के उस पार सामने वाले उस छोटे से घर में रहता हूँ जिसे आप अपनी खिड़की से देख सकते हैं । कल मैं अपने विवाह की रजत जयन्ती मना रहा हूँ । मैं आपको तथा आपकी लड़कियों को आमन्त्रिात करता हूँ कि मेरे यहाँ आयें और मित्रातापूर्ण भोज में शामिल हों । ताबूतसाज़ ने सिर झुकाकर निमन्त्रण स्वीकार कर लिया, और मोची से बैठने तथा लगे हाथ एक प्याला चाय पीने का अनुरोध किया । मोची बैठ गया । वह कुछ इतने खुले दिल का था कि शीघ्र ही दोनों अत्यन्त घुल - मिलकर बातें करने लगे। 
- कहिये, आपके धन्धे का क्या हालचाल है ? आद्रियान ने पूछा । 
     हे-हो, शूल्त्स ने जवाब दिया । कभी अच्छा, कभी बुरा । सब चलता है । यह बात ज़रूर है कि मेरा माल आपसे भिन्न है - जो जीवित हैं, बिना जूतों के भी रह सकते हैं, लेकिन मरने के बाद तो ताबूत के बिना चल नहीं सकता। बिल्कुल ठीक कहते हो, आद्रियान ने सहमति प्रकट की। लेकिन एक बात है । माना कि अगर जीवित आदमी के पास पैसा नहीं है तो वह बिना जूतों के भी रह जाये और तुम्हारी टाल कर जाये लेकिन मृत भिखारी के साथ ऐसी बात नहीं, बिना कुछ ख़र्च किये ही वह ताबूत पा जाता है । इस तरह बातचीत कुछ देर और चलती रही । आखि़र मोची उठा और अपने निमन्त्रण को एक बार फिर दोहराते हुए उसने ताबूतसाज़ से विदा ली । 
     अगले दिन, ठीक दोपहर के समय, ताबूतसाज़ और उसकी लड़कियाँ नये ख़रीदे घर के दरवाज़े से बाहर निकले और अपने पड़ोसी से मिलने चल दिये। आधुनिक उपन्यासकारों की भाँति, उनकी लीक पर चलते हुए, न तो हम यहाँ आद्रियान प्रॅखोरोव के रूसी काफ़लान ( जामे ) का वर्णन करेंगे, और न आकुलिना तथा दारिया के यूरोपीय पहरावे का । फिर भी यह बताना बेकार न होगा कि दोनों युवतियाँ पीले हैट और लाल जूतियाँ पहने थीं । जिन्हें वे ख़ास - ख़ास मौकों पर ही बाहर निकालती थीं । 
      मोची का छोटा - सा कमरा अतिथियों से भरा था। उनमें अधिकांश जर्मन दस्तकार, उनकी पत्नियाँ और ऐसे युवक थे जो काम सीखने के लिए उसकी शागिर्दी कर रहे थे । रूसी अफसरों में से केवल एक वहाँ मौजूद था - पुलिस का सिपाही यूरको। जाति का वह चूखन था, और उसकी आवभगत में मेज़बान ख़ास तौर से जुटा था । पच्चीस साल से पूरी फरमाबरदारी के साथ, पॅगॅर्येल्स्की के सुप्रसि ( हरकारे की भाँति, वह अपनी नौकरी बजा रहा था। 1812 की अगलग्गी ने, प्राचीन राजधानी को ध्वस्त करने के साथ-साथ, उसकी पीली सन्तरी - चौकी की खोली को भी ख़ाक में मिला दिया था । लेकिन दुश्मन के दुम दबाकर भागते ही उसकी जगह पर एक नयी सन्तरी - चौकी का उदय हो गया - सलेटी रंग की, और सफेद प्राचीन यूनानी दोरियसी बनावट के पायों से अलंकृत । और सिर से पाँव तक लैस यूरको उसके सामने अब फिर , पहले की ही भाँति, इधर से उधर और उधर से इधर गश्त लगाने लगा ।  निकीत्स्की दरवाज़े के इर्द - गिर्द बसे सभी जर्मनों से वह परिचित था, और उनमें से कुछ तो ऐसे थे जिनके पास उसकी सन्तरी - चौकी के अलावा रात काटने की और कोई जगह नहीं थी। आद्रियान भी उससे - एक ऐसे आदमी से जिसकी देर या सबेर, निश्चय ही उसे भी ज़रूरत पड़ सकती थी - जान-पहचान करने में पीछे नहीं रहा और जब अतिथियों ने मेज़ पर बैठना शुरू किया तो ये दोनों एक-दूसरे के आस-पास बैठे। शूल्त्स, उसकी पत्नी और उनकी सत्राह वर्षीया लड़की लोत्तखेन, अपने अतिथियों के साथ भोजन में शामिल होते हुए भी, बावर्ची को परोसने और रकाबियों में चीज़ें रखने में मदद दे रहे थे। बीयर खुलकर बह रही थी। यूरको अकेले ही चार के बराबर खा-पी रहा था। आद्रियान भी पीछे नहीं था। बातचीत का सिलसिला, जो जर्मन भाषा में चल रहा था, हर घड़ी ज़ोर पकड़ रहा था। सहसा मेज़बान ने सबका ध्यान खींचा, और कोलतार पुती एक बोतल का काग खोलते हुए रूसी भाषा में ज़ोरों से चिल्लाकर कहा - नेक लूइस के स्वास्थ्य के नाम!
     काग के निकलते ही तरल शैम्पेन के झाग उपफनने लगे। मेज़बान ने अपनी अधेड़ जीवन - संगिनी का ताज़ा रंगतदार चेहरा चूमा, और अतिथियों ने हल्ले - गुल्ले के साथ नेक लूइस के स्वास्थ्य का जाम पिया । इसके बाद, एक दूसरी बोतल का काग खोलते हुए मेज़बान चिल्लाया प्यारे अतिथियों के स्वास्थ्य के नाम! और अतिथियों ने, बदले में धन्यवाद देते हुए फिर गिलास ख़ाली कर दिये।
     इसके बाद स्वास्थ्य कामना के लिए गिलास खनकाने और ख़ाली करने की जैसे एक बाढ़ आ गयी - जितने अतिथि थे एक-एक करके उन सबके नाम जाम पिये गये, फिर मास्को और व़फरीब एक दर्जन छोटे - मोटे जर्मन नगरों के नाम गिलास खनके, फिर सब धन्धों के नाम एक साथ और उसके बाद अलग-अलग करके गिलास ख़ाली हुए, और इन धन्धों में काम करने वाले कारीगरों तथा सभी नये शागिर्दों के स्वास्थ्य के नाम बोतलों के काग खुले।
      आद्रियान नशे में धुत्त नहीं हुआ था, काफी सँभलकर वह पी रहा था, लेकिन उस पर भी ऐसा रंग सवार हुआ कि उसने सचमुच में सनकीपन से भरी एक कामना के नाम गिलास ख़ाली कर दिया। इसके बाद एक हट्टे-कट्टे अतिथि ने - जो पावरोटी - बिस्कुट बनाने का काम करता था - अपना गिलास उठाते हुए चिल्लाकर कहा - उन लोगों के स्वास्थ्य के लिए जिनकी ख़ातिर हम काम करते हैं! इस कामना का भी, पहले कि भाँति, सभी ने ख़ुशी से स्वागत किया। अतिथि एक-दूसरे के सामने झुक-झुककर गिलास ख़ाली करने लगे -दर्ज़ी मोची के सामने, मोची दर्ज़ी के सामने, पावरोटी बनाने वाला इन दोनों के सामने और सभी अतिथि एक साथ मिलकर पावरोटी बनाने वाले के सामने। 
     एक-दूसरे के सामने झुककर पारस्परिक अभिवादन का यह सिलसिला अभी चल ही रहा था कि यूरको ने ताबूतसाज़ की ओर मुँह करते हुए चिल्लाकर कहा - आओ पड़ोसी, तुम्हारे मृत आसामियों के स्वास्थ्य का जाम पियें! इस पर, एक सिरे से, हँसी ने सबको ग्रस लिया। ताबूतसाज़ को यह बुरा मालूम हुआ, और उसकी भौंहे चढ़ गयीं । लेकिन इधर किसी का ध्यान नहीं गया, अतिथियों का दौर चलता रहा और जब वे मेज़ से उठे तो उस समय रात की आखि़री प्रार्थना के लिए गिरजे की घण्टियाँ बज रही थीं। 
     काफी रात ढल जाने पर अतिथि विदा हुए। अधिकांश नशे में धुत्त थे । हट्टा-कट्टा नानबाई और जिल्दसाज़ जिसका चेहरा लाल मोरक्को की जिल्दचढ़ा मालूम होता था, पुलिस के सिपाही की दोनों बग़लों में अपने हाथ डाले, उसे उसकी शरणागार की ओर ले चले। इस समय उन्हें यह रूसी कहावत याद आ रही थी कि फर्ज़ का मज़ा उसकी वसूली में है । ताबूतसाज़ भी अपने घर लौट आया था। वह गुस्से से भरा था और दिमाग़ उसका गड़बड़झाला बना हुआ था। आखि़र उसने सस्वर सोचा, मेरा धन्धा क्या अन्य धन्धों से कम सम्मानपूर्ण है ? ताबूतसाज़ और जल्लाद क्या भाई - भाई हैं - क्या उन्हें एक साथ रखा जा सकता है ? तो फिर इन विदेशियों के हँसने में क्या तुक है, वे क्यों हँसे ? क्या वे ताबूतसाज़ को रंग-बिरंगे कपड़ों में सजा बेढंगा विदूषक समझते हैं? तिस पर मज़ा यह कि इन सबको गृह-प्रवेश के प्रीति-भोज में बुलाने जा रहा था। ओह नहीं, मैं ऐसी बेवकूफी नहीं करूँगा। मैं उन्हें ही बुलाऊँगा जिनके लिए मैं काम करता हूँ - अपने ईसाई मृतकों को!
     ओह मालिक! नौकरानी ने, जो उस समय ताबूतसाज़ के पाँव से जूते उतार रही थी, अचरज और भय से चीख़ते हुए कहा। ज़रा सोचिये तो सही कि यह आप क्या कर रहे हैं! सलीब का चिर बनाइये, कहीं मृतकों को भी गृह-प्रवेश के लिए बुलाया जाता है? कितनी भयानक बात है यह! ख़ुदा साक्षी है, यह मैं ज़रूर करूँगा, आद्रियान ने कहना जारी रखा। और कल ही । ऐ मेरे आसामियों, मेरे शुभचिन्तकों, कल रात भोज में शामिल होकर मुझे सम्मानित करना। जो कुछ रूखा - सूखा मेरे पास है, सब तुम्हारा ही दिया हुआ है।
इन शब्दों के साथ ताबूतसाज़ ने बिस्तर की शरण ली और कुछ ही देर बाद खर्राटे भरने लगा । 
     सुबह जब आद्रियान की आँखें खुलीं तो अभी काफी अँधेरा था । सौदागर की पत्नी त्रयूखिना रात में ही मर गयी थी और उसके मुसाहिबों में से एक ने आकर उसे इसकी ख़बर दी थी। वह घोड़े की पीठ पर, तेज़ी से उसे दौड़ाता आया था। ताबूतसाज़ ने वोदका के लिए दस कोपेक उसे इनाम में दिये, तुर्ताप़फुर्ती कपड़े पहने, एक द्रोश्की पकड़ी और उस पर सवार होकर राज़गूल्याइ पहुँचा। मृतक के घर के दरवाज़े पर पुलिस वाले पहले से तैनात थे, और सौदागर इधर से उधर इस तरह मँडरा रहे थे जैसे सड़ी लाश की गन्ध पाकर कौवे मँडराते हैं। शव मेज़ पर रखा था, चेहरा मोमियाई मालूम होता था, लेकिन नाक-नक़्शा अभी ह्रास से बिगड़ा नहीं था। सगे-सम्बन्धी, अड़ोसी-पड़ोसी,नौकर-चाकर उसके चारों ओर खड़े थे। खिड़कियाँ सभी खुली थीं, मोमबत्तियाँ जल रही थीं और पादरी मृतक के लिए शान्ति-पाठ कर रहे थे।
     आद्रियान मृतक स्‍त्री के भतीजे के पास पहुँचा। वह युवक सौदागर था और फैशनदार लबादा कोट पहने था। आद्रियान ने उसे सूचना दी कि ताबूत, मोमबत्तियाँ, ताबूत ढँकने का कफन और अन्य मातमी साज़-सामान बहुत ही बढ़िया हालत में तुरन्त मुहैया किये जायेंगे। यों ही, उड़ते हुए दिमाग़ से, मृतक के उत्तराधिकारी ने उसे धन्यवाद दिया और कहा कि दामों को लेकर वह झिक - झिक नहीं करेगा, और सब कुछ ख़ुद ताबूतसाज़ के ईमान और नेकनीयती पर पूर्णतया छोड़ देगा। ताबूतसाज़ ने अपनी आदत के अनुसार शपथ लेकर कहा कि वह एक पाई भी ज़्यादा वसूल नहीं करेगा, और इसके बाद मुसाहिब ने उसकी ओर और उसने मुसाहिब की ओर भेदभरी नज़र से देखा, और सामान तैयार करने के लिए गाड़ी पर सवार हो घर लौट आया। दिन-भर वह इसी तरह राज़गूल्याइ और निकीत्स्की दरवाज़े के बीच दौड़ लगाता रहा। कभी जाता, कभी वापस लौटता। साँझ तक उसने सभी कुछ ठीक-ठाक कर दिया और गाड़ी को विदा कर पैदल ही घर लौटा। चाँदनी रात थी। सही-सलामत निकीत्स्की दरवाज़े पहुँच गया। गिरजा के पास से गुज़रते समय हमारे मित्रा यूरको ने उसे ललकारा,लेकिन जब देखा कि अपना ही ताबूतसाज़ है तो उसके लिए शुभरात्रि की कामना प्रकट की। देर काफी हो गयी थी। जब वह अपने घर के पास पहुँचा तो यकायक उसे ऐसा मालूम हुआ मानो   कोई दरवाज़े के पास तक गया, दरवाज़े को खोला और पिफर भीतर जाकर अन्तर्ध्यान हो गया।
     यह क्या तमाशा है? आद्रियान अचरज से भर उठा। इस समय भला कौन मुझसे मिलने आ सकता है ? कहीं कोई चोर तो नहीं है? कहीं ऐसा तो नहीं कि कोई सैलानी युवक है जो रात को मेरी नन्ही मूर्खाओं - निठल्ली लड़कियों - से साँठ-गाँठ करने आया हो ?
     एक बार तो उसने यहाँ तक सोचा कि अपने मित्रा यूरको को मदद के लिए बुला लाये। तभी एक और व्यक्ति दरवाज़े के पास पहुँचा और भीतर पाँव रख ही रहा था कि ताबूतसाज़ को घर की ओर तेज़ी से लपकते हुए देखकर वह निश्चल खड़ा हो गया, और अपने तिरछे टोप को उठाकर अभिवादन करने लगा। आद्रियान को ऐसा मालूम हुआ मानो उसने यह शक्ल कहीं देखी है, लेकिन जल्दी में उसे ध्यान से नहीं देख सका। हाँफते हुए बोला - क्या आप मुझसे मिलने आये हैं ? चलिये,भीतर चलिये।
तकल्लुफ के फेर में न पडे़ं, मित्र अनजान ने थोथी आवाज़ में कहा ।
      आगे-आगे चलिये, और अपने अतिथियों का पथ - प्रदर्शन कीजिये! आद्रियान को ख़ुद इतनी उतावली थी कि चाहने पर भी वह तकल्लुफ निभा न पाता। उसने दरवाज़ा खोला और घर की सीढ़ियों पर पाँव रखा। दूसरा भी उसके पीछे - पीछे चला । आद्रियान को ऐसा मालूम हुआ मानो उसके कमरों लोग टहल रहे हैं। फ्यह सब क्या तमाशा है, मेरे राम? उसने सोचा और लपककर भीतर पहुँचा... और उसके घुटनों ने जवाब दे दिया। कमरा प्रेतों से भरा था। खिड़की से चाँदनी भीतर पहुँच रही थी और उनके पीले तथा नीले चेहरों, लटके हुए मुँहों, अधमुँदी आँखों और चोटी-सी नाकों को उजागर कर रही थी... आद्रियान ने भय से काँपकर पहचाना कि ये सब वे ही लोग हैं जिनकी मैयत में उसने योग दिया था, और वह जो उसके साथ भीतर आया था, वही ब्रिगेडियर था जिसे मूसलाधार वर्षा के बीच दफनाया गया था। वे सब, पुरुष भी और स्त्रियाँ भी, ताबूतसाज़ के चारों ओर बटुर आये, और सिर झुका - झुकाकर अभिवादन करने लगे । भाग्य का मारा केवल एक ऐसा था जो कुछ दिन पहले मुफत दप़फनाया गया था, पास नहीं आया। बेचारगी की मुद्रा बनाये वह सबसे अलग कमरे के एक कोने में खड़ा था, मानो अपने फटे हुए चिथड़ों को छिपाने का प्रयत्न कर रहा हो । उसके सिवा अन्य सभी बढ़िया कपड़े पहने थे - स्त्रियों के सिरों पर फीतेदार टोपियाँ थीं, दिवालिया अफसर र्दियाँ डाटे थे, लेकिन उनकी हजामतें बढ़ी थीं, सौदागरों ने एक-से-एक बढ़िया कपड़े छाँटकर निकाले थे। देखा, प्रॅखोरोव! सबकी ओर से बोलते हुए ब्रिगेडियर ने कहा, हम सब तुम्हारे निमन्त्रण पर अपनी - अपनी कब्र से उठकर आये हैं । केवल वे जो एकदम असमर्थ हैं, जो पूर्णतया गल-सड़ चुके हैं, नहीं आ सके। इसके अलावा उन्हें भी मन मसोसकर रह जाना पड़ा जो केवल हड्डियों का ढेर - भर रह गये थे और जिनका मांस पूरी तरह गल चुका था। लेकिन इनमें से भी एक अपने - आपको नहीं रोक सका, तुमसे मिलने के लिए वह इतना बेचैन था... उसी समय एक छोटा कंकाल कोहनियों से सबको धकियाता हुआ आगे निकल आया और आद्रियान की ओर बढ़ने लगा। उसका मांसहीन चेहरा आद्रियान की ओर बडे़ चाव से देख रहा था। चटक हरे और लाल रंग की धज्जियाँ और झिनझिनी सालटी उसके ढाँचे से जहाँ - तहाँ लटकी थीं, जैसे बाँस से लटका दी जाती हैं, और उसके घुटने से नीचे की हड्डियाँ घुड़सवारी के ऊँचे जूतों के भीतर इस तरह खटखटा रही थीं जैसे खरल में मूसली खटखटाती है ।
     मुझे पहचाना नहीं, प्रॅखोरोव ?  कंकाल ने कहा । फ्गारद के सार्जेण्ट प्योत्रा पैत्रोविच कुरीस्किन को भूल गये, जिसके हाथ तुमने 1798 में अपना पहला ताबूत बेचा था - वही जिसे तुमने बतूल का बताया था, लेकिन निकला वह चीड़ की पतली तख़्तियों का! यह कहते हुए आद्रियान का कंकाली आलिंगन करने के लिए उसने अपनी बाँहें फैला दीं। अपनी समूची शक्ति बटोरकर आद्रियान चिल्लाया और कंकाल को उसने पीछे धकेल दिया। प्योत्रा पैत्रोविच लड़खड़ाकर फर्श पर गिर पड़ा, बिखरी हुई हड्डियों का एक ढेर मात्रा। मृतकों में विक्षोभ की एक लहर दौड़ गयी । अपने साथी के अपमान का बदला लेने के लिए वे आद्रियान की ओर लपके - चीख़ते-चिल्लाते, कोसते और धमकियाँ देते। अभागे मेज़बान के होश गुम थे। चीख़-चिल्लाहट ने उसके कान सुन्न कर दिये थे, और वे उसे कुचल देना ही चाहते थे। उसकी आँखों के आगे अँधेरा छा गया, और लड़खड़ाकर अब वह भी मृत सार्जेण्ट की हड्डियों के ढेर पर गिर पड़ा। वह बेसुध हो गया था । सूरज की किरनें उस बिस्तरे को आलोकित कर रही थीं जिस पर ताबूतसाज़ सो रहा था। आखि़र उसने आँखें खोलीं और देखा कि नौकरानी समोवार में कोयले दहकाने के लिए फूँक मार रही है। रात की घटनाओं की याद आते ही आद्रियान के शरीर में कँपकँपी-सी दौड़ गयी। त्रयूखिना, ब्रिगेडियर और सार्जेण्ट कुरीस्किन के धुँधले चेहरे उसके मस्तिष्क पर छाये हुए थे। वह चुपचाप प्रतीक्षा करता रहा कि नौकरानी ख़ुद बातचीत शुरू करेगी और रात की घटनाओं का बाफी हाल उसे बतायेगी।
     मालिक आज आप कितनी देर तक सोये, सुबह के समय पहनने का चोग़ा उसे थमाते हुए अक्सीन्या ने कहा । हमारा पड़ोसी दर्ज़ी आपसे मिलने आया था, और पुलिस का सिपाही भी एक चक्कर लगा गया है। वह यह कहने आया था कि आज उसका जन्मदिन है। लेकिन आप सो रहे थे, और हमने जगाना ठीक नहीं समझा । अच्छा विधवा त्रयूखिना के यहाँ से भी कोई आया था? - परमात्मा उसे स्वर्ग में शान्ति दे।
     यह क्या ? क्या त्रयूखिना मर गयी, मालिक ? तुम भी निरी चोंच हो। उसका मातमी साज़-सामान तैयार करने में कल तुम्हीं ने तो मेरा हाथ बँटाया था! आप पागल तो नहीं हो गये, मालिक? अक्सीन्या ने कहा। फ्या कल के नशे के बादल अभी तक दिमाग़ पर छाये ही हैं ? कल किसी की मैयत का सामान तैयार नहीं हुआ। आप दिन-भर जर्मन के यहाँ दावत उड़ाते रहे, रात को नशे में धुत्त लौटे और अपने इसी बिस्तर पर गिर पड़े जिस पर कि आप अभी तक सोये हुए थे। प्रार्थना के लिए गिरजे की घण्टी भी बजते - बजते आखि़र थककर चुप हो गयी। सचमुच? ताबूतसाज़ ने सन्तोष की साँस लेते हुए कहा ।
 और नहीं तो क्या झूठ ?  नौकरानी ने जवाब दिया।
 तो फिर जल्दी से चाय बनाओ, और लड़कियों को यहीं बुला लाओ!

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