1
मिली जितनी कभी सोची नहीं थी।
हमारी ख़्वाईशें इतनी नहीं थी।
न कर पायी असर हमपर कभी वो,
कही जिस बात में तल्ख़ी नहीं थी।
सिला दे पाए जो रस्में वफ़ा का,
रिवायत आपकी वैसी नहीं थी।
फ़िक्र रखती तो जाकर लौट आती,
हवा थी वो कोई कश्ती नहीं थी।
मिली तो मिल गई जब उसने चाहा,
ख़ुशी हालात से रूठी नहीं थी।
किसी का नाम लेकर भूल जाना,
ये आदत आपकी अच्छी नहीं थी।
2
रुख़ पर घूँघट पलता फिर।
कैसे चाँद निकलता फिर।
बादल के बिन सावन का,
मौसम कितना खलता फिर।
पास अग़र होती मंज़िल,
रस्ता कैसे चलता फिर।
उम्मीदें ना रहती तो,
गिरकर कौन संभलता फिर।
इक पहचान छुपाने को,
कितने नाम बदलता फिर।
रहता पल-पल का पाबंद,
कब अवसर से टलता फिर।
राम सा होता जग सारा,
कौन किसी से छलता फिर।
3
ख़्वाब जो नींद में देखा होगा।
जागकर सोचने से क्या होगा।
आपके जो क़रीब आया है,
जान पहचान का रहा होगा।
जान पाया है हाल महफ़िल का,
शख़्श वो रात भर जगा होगा।
साथ चलकर कहीं बिछुड़ना फिर,
इस ज़माने का सिलसिला होगा।
जो निभाया गया है मुश्क़िल से,
सख़्त वो दिल का क़ायदा होगा।
पास आएगा छोड़कर सबको,
साथ में जिसके वास्ता होगा।
4
रिवायत जो तुम्हारी रंजिशें हैं।
निभाना वो हमारी कोशिशें हैं।
सभी मिल जायें अपनी ज़िंदगी में,
यही अक़्सर सभी की ख़्वाहिशें हैं।
निग़ाहें ढूँढती है आसमाँ पर,
ज़मीं से दूर कितनी बारिशें हैं।
समुंदर को जगाने की हक़ीक़त,
घटाओं की हवा से साजिशें हैं।
चुनावों में नज़र आती है सारी,
सियासत के लिए जो वर्ज़िशें हैं।
संभलकर इश्क़ को अंज़ाम देना,
ज़माने में हज़ारों बंदिशें हैं।
5
ज़मीं को छोड़कर बसना जहाँ पर।
कोई रस्ता नहीं जाता वहाँ पर।
सभी हालात हो जीने सरीखे ,
ठिकाना है कहाँ उस आसमाँ पर।
चला अक़्सर उसी का सिलसिला हैं,
खरा उतरा है जो भी इम्तिहाँ पर।
ज़रा रुककर,ज़रा चलकर भी वैसे,
सफ़र करता है अपना कारवाँ पर।
कोई रहता है अपने दरमियाँ पर।
अमझेरा धार मप्र
पिन 454441
मो 9893119724
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