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शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2023

अब सितम कुछ और ढ़ाओ, ताकि हो बरक मुझे

डॉ महेंद्र शर्मा मधुकर
अब सितम कुछ और ढ़ाओ, ताकि हो बरक मुझे
अब तुम्हारे ग़म से यानि , मिलती है राहत मुझे
ये जुनूने इश्क¸ ले आया है कैसे मोड़ पर
अब हरिक सूरत में, दिखती है तिरी सूरत मुझे
लग रहा है ये, फ़कीरों की है सोहबत का असर
अब लुभाती ही नहीं है , दौलतो शौहरत मुझे
फिर से अब निर्माण होना है ,बहोत मुश्किल मेरा
बेवफ़ाई ने तेरी यूं कर दिया गारत मुझे
मेरे अंदर जो हैं शैतां , मैं करूँ उनसे जिहाद
ये खुदा से इल्तजि है , दे जरा हिम्मत मुझे
बेवफ़ाई से तेरी कोई भी शिकवा न था
सख्त तेरा बोलना कर गया आहत मुझे
ज़िदगी तू ऐसा कर , कुछ रोज को छुट्टी पे जा
एक पल की भी नहीं है आज़कल फ़ुर्सत मुझे

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