बसंत भट्ट
बात उस समय की है जब मैं इंटर में था, और मेरी बोर्ड की परीक्षा चल रही
थी परीक्षा सेंटर मेरे घर से करीब ४० किलो मीटर दूर था। मैं और मेरा मित्र
लक्षमण सिंह जो की एक फौजी था, परीक्षा देने के लिए हम लोग घर से ही रोज
जाते थे। हमारे कुछ पेपर सुबह दिन के समय थे। हम दोनों ने तय किया की हम
सुबह वाले पेपर स्कूटर से और दिन वाले पेपर बस से देने जायेंगे। हमारे दिन
वाले पेपर पहले थे। हमारे यहाँ से सीधी बस सेवा न होने के कारण हमें अपनी
बस करीब २८ किलोमीटर बाद बदलनी पड़ती थी। हमारे दो पेपर ठीक - ठाक तरीके से
हो गए। तीसरे दिन हम घर से कुछ जल्दी आ गए २८ किलोमीटर का सफर तय कर के हम
अपनी दूसरी बस का इंतजार कर रहे थे। तभी हमें अपना एक मित्र दिखाई दिया हम
दोनों उस से बात करने लगे उसने हमें बताया की उसने यहीं दुकान कर रखी है।
और पास में ही मेरा कमरा है। वह बोला चलो कमरे में चलते हैं।
हमारी
बस आने में अभी टाइम बचा था। हमने सोचा क्या पता कभी कोई काम पड जाये
इसलिए कमरा देख लिया जाय हम लोगों ने उसके कमरे में जाकर पानी पिया और हम
वापस आकर बस का इंतजार करने लगे। काफी देर इंतजार करने के बाद बस नहीं आई
तो मुझे बड़ी चिंता होने लगी। मैंने अपने मित्र से कहा जब हम लोग उसके वहा
गए थे तब शायद हमरी बस निकल गयी है। अब क्या करे तभी याद आया की उसके पास
मोटर साईकिल है। क्यूं न मोटर साईकिल से ही पेपर देने जांय। हम दोनों ने
उसके पास जाने का निश्चय किया वह अभी कमरे में ही था। वह बोला में अभी खाना
खा रहा हूँ। तुम लोग मेरी दुकान पर चले जाओ और मोटर साईकिल निकाल कर दुकान
की चाभी मुझे दे जाना हम लोग उसकी दुकान पर गए। वहां पर उसकी मोटर साईकिल
खड़ी थी। राजदूत कम्पनी का ओल्ड मोडल था जिसमे चाभी की जगह एक कील का
इस्तेमाल किया जा सकता है। काफी कोशिश करने पर भी जब वह स्टार्ट नहीं हुई
तो मैंने अपने मित्र को उसके पास भेजा तो पता लगा उसमें तेल नहीं है! मेरा
मित्र तेल लेने पास के पेट्रोल पम्प पर गया , और दोनों तेल लेकर साथ ही आ
गए।
तेल
मोटर साईकिल में डालकर उसने स्टार्ट कर के मोटर साईकिल मेरी हाथ में दे दी
तभी मुझे हमारी बस दिखाई दी। मैंने अपने मित्र लक्ष्मण सिंह को कहा मोटर
साईकिल को छोड़ कर बस से चलते है वह बोला अब तो तेल भी डाल दिया है , मोटर
साईकिल से ही चलेंगे। मैंने भी हां कह दी हम लोग मोटर साईकिल से परीक्षा
देने चल दिए। हम बातें करते हुए मजे से चले जा रहे थे, अभी हम करीब ४
किलोमीटर ही चले होंगे मोटर साईकिल एकदम बंद हो गयी। मैंने दुबारा स्टार्ट
की फिर मोटर साईकिल फिर थोड़ी दूर चली और फिर बंद हो गई। मैंने फिर स्टार्ट
की मोटर साईकिल थोड़ा, चलती फिर बंद हो जाती। हमारी परीक्षा का टाइम हो गया
था। मैं तो रोने लगा। मेरा दोस्त बोला - मुझे तो कोई चिंता मैंने पढ़ा भी
नहीं है। लेकिन मेरी आंखों के आगे अंधेरा छा रहा था। मेरा दोस्त धक्का
लगाते -लगाते थक गया था। वह सड़क के एक किनारे बैठ गया था। अब तो बाईक भी
स्टार्ट नहीं हो रही थी।
रोते -रोते मैं भगवान को याद कर रहा था और
मोटर साईकिल में किक मार रहा था। लेकिन मोटर साईकिल स्टार्ट होने का नाम
नहीं ले रही थी। मुझे तभी माँ पूर्णागिरी की याद आई मैंने उनका नाम ले कर
के मोटर साईकिल में किक मारी मोटर साईकिल स्टार्ट हो गई। मैंने अपने मित्र
को बैठने को कहा अब हमारी मोटर साईकिल स्कूल के गेट पार कर बंद हो गई।
मैंने मोटर साईकिल को खींच स्कूल के ग्राउंड में खड़ी कर दी और परीक्षा रूम
की और हमने दौड़ लगा दी। हम लोग २० मिनट लेट थे। जल्दी से पेपर व कापी
लेकर मैं लिखने बैठ गया मेरा पेपर ठीक से हो गया था। पेपर छूटने के बाद मैं
और मेरा मित्र मोटर साईकिल को धक्का लगाते हुए मोटर साईकिल की दुकान पर ले
गए। मैकेनिक ने मोटर साईकिल की जांच कर बताया कि प्रेशर वाली पाइप जंग
लगकर गली हुई है। और वह बोला इस मोटर साईकिल की कंडीशन को देखकर तो यह लगता
है कि यह महीनों से खड़ी थी। तभी मुझे ध्यान आया जब मैंने उसकी दुकान से
मोटर साईकिल को बाहर निकला था वह धूल से सनी हुई थी। वह बोला यह चलाने लायक
थी नहीं आप लोग कैसे ले आये।
क्या
यह माँ की कृपा थी जो हम परीक्षा में बैठ पाये? जो भी हो, मैं इंटर में
पास हो गया था। जब जब भी यह वाकया मुझे याद आता है, मुझे चमत्कृत करता है
और ईश्वरीय शक्ति में मेरी आस्था को सुदृढ़ करता है।
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