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गुरुवार, 2 जून 2022

प्रीति-वसन बुनने से पहले ,

 

प्रीति-वसन बुनने से पहले , तोड़ दिया क्यों ताना बाना |
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हुआ नहीं क्यों कर में कम्पन |
क्यों पाषाण बना साथी मन |
किसने विवश किया था तुमको,
जो तोड़ा यह पावन बंधन |
हो जाता सब सत्य उजागर |
प्रश्नों के मिल जाते उत्तर |
सम्भव है कुछ राह निकलती,
यदि कतिपय मिल जाता अवसर |
दंश दे गया आकस्मिक यूँ , बिना कहे जीवन से जाना |
प्रीति-वसन बुनने से पहले , तोड़ दिया क्यों ताना बाना ||
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एकल निर्णय बिना विचारे |
हाय !मीत क्यों किया बता रे |
नभ-कुसुमों को छूने के क्यों,
टूट गए संकल्प हमारे |
एक बार मन की कह देते |
कुछ मेरे मन की सुन लेते |
सम्भव था साथी हम दोनों,
जीवन-नैया मिलकर खेते |
जान बूझ कर लूट लिया क्यों , प्रियतम मेरा प्रेम-खज़ाना |
प्रीति-वसन बुनने से पहले , तोड़ दिया क्यों ताना बाना ||
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इतना सघन हमारा नाता |
फिर भी रूठा हाय ! विधाता |
उपालम्भ दूँ किसको जाकर,
कुछ भी समझ नहीं मैं पाता |
यह प्रारब्ध मान लूँ प्रियवर |
या फिर कठिन समय का चक्कर |
तुम कैसे हो और कहाँ हो .
इस चिंता से उबरूं क्यों कर |
लाख जतन कर डाले लेकिन , मुश्किल है मन को समझाना|
प्रीति-वसन बुनने से पहले , तोड़ दिया क्यों ताना बाना ||
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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी |


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