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मंगलवार, 7 दिसंबर 2021

समीर उपाध्याय की कविताएं

 

कविता:1

आगे बढ़ना ही है तो

आगे बढ़ना ही है तो 
मदमस्त हाथी बन जाओ। 
कुछ लोगों को छोड़कर बाकी सब 
कुत्ते की तरह भोंकते रहेंगे। 
मायूस क्यों होता है मनवा?
अरे! कोई फर्क नहीं पड़ता।

आगे बढ़ना ही है तो 
उफनते हुए सागर बन जाओ। 
कुछ लोगों को छोड़कर बाकी सब 
लहरों को रोकने का यत्न करते रहेंगे। 
मायूस क्यों होता है मनवा? 
अरे! कोई फर्क नहीं पड़ता।

आगे बढ़ना ही है तो 
अडिग हिमालय बन जाओ। 
कुछ लोगों को छोड़कर बाकी सब 
नींव को हिलाने का यत्न करते रहेंगे। 
मायूस क्यों होता है मनवा? 
अरे! कोई फर्क नहीं पड़ता।

आगे बढ़ना ही है तो 
निर्मल चंद्रमा बन जाओ।
कुछ लोगों को छोड़कर बाकी सब 
कालिख लगाने का यत्न करते रहेंगे। 
मायूस क्यों होता है मनवा? 
अरे! कोई फर्क नहीं पड़ता।

कविता:2
शब्द

शब्द
ईश्वर का रूप है।
इसलिए सम्मान करें
हर एक शब्द का।
शब्द के हाथ पांव नहीं है,
फिर भी
मुंह से निकले कड़वे शब्द
कभी किसी के लिए
जिंदगी भर ना भरने वाले
जख्म बन जाते हैं।
और
मुंह से निकले मीठे शब्द
कभी किसी के लिए
जीने की वजह भी बन जाते हैं।
इसलिए शब्द के स्वर को
सुधारने का यत्न करें।
यथा समय
यथा योग्य
शब्दों का प्रयोग कर
जीवन को शब्दोंत्सव बनाएं।
बस, हो गई साधना संपन्न।


मनहर पार्क: 96/ए
चोटीला: 363520
जिला: सुरेंद्रनगर
गुजरात
9265717398

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