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मंगलवार, 19 अक्तूबर 2021

आत्मा आहत हुई

★वीरेन्द्र खरे 'अकेला'

आत्मा आहत हुई तो शब्द बाग़ी हो गए।
कहते कहते हम ग़ज़ल दुष्यंत त्यागी हो गए।
है सियासत कोठरी काजल की रखना एहतियात,
अच्छे-अच्छे लोग इसमें जा के दाग़ी हो गए।
गेह-त्यागन और यह सन्यास धारण सब फ़रेब,
ज़िन्दगी से हारने वाले विरागी हो गए।
गालियाँ बकते रहे जिनको उन्हीं के सामने,
क्या हुआ ऐसा कि श्रीमन पायलागी हो गए।
आप जिन कामों को करके हो गए पुण्यात्मा,
हम उन्हीं को करके क्यों पापों के भागी हो गए।

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