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मंगलवार, 19 अक्तूबर 2021

मेरी पलकें भिगोना चाहता है

मेरी पलकें भिगोना चाहता है
मेरा दिल खूब रोना चाहता है
बहुत नाराज़ है गुज़रे दिनो से
न जाने किसका होना चाहता है
मैं बहलाऊ इसे एक बार फिर से
ये बच्चा तो खिलोना चाहता है
उसे कोई खबर करदो के उसका
दिवाना खुद को खोना चाहता है
ज़फ़ा के दौर मे शायद ये नादा
वफ़ा का बीज बोना चाहता है
ज़हन को आरज़ू है कोठियों की
बदन तो इक बिछोना चाहता है
जगाया रात भर फुर्क़त ने जिसको
वो आशिक़ दिन मे सोना चाहता है
वो बूढ़ा बाप जो मालिक है घर का
वो घर में एक कोना चाहता है
... अनवर क़ुरैशी

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