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बुधवार, 3 मार्च 2021

सिंक रही हैं भावनाएं रोटियों सी,

पद्मा मिश्रा


गोल घिरते जिन्दगी के व्यूह इतने,
हर मोड़ पर ज्यों घूमती है गोल रोटी
फिर भी कोई आस मन की अनबुझी सी,
सिंक रही हैं भावनाएं रोटियों सी,
मै घुमाती हूँ समस्याओं के पट पर,
उलझनें आटे सी कोमल और गीली,
भूख सी फैली हुई है आंच मन की,
सिंक रही हैं भावनाएं रोटियों सी,
कल फिर खिलेगा क्षुधा का विकराल सूरज,
फिर सजेगा घर का कोई एक कोना,
थालियों में सज उठेंगी कामनाएं,
फिर कोई सपना दिखाती प्यास होगी,
सब्जियों सी काटती हूँ,दर्द की हर रात बीती,
सिंक रही हैं भावनाएं रोटियों सी.
दाल पकती ज्यों कोई भूली कहानी,
हास हल्दी का.., नमक सी पीर जग की,
प्रार्थनाएं छौंक सी बेवक्त उठतीं,
घुट रही साँसों में जीवन की उदासी.
सिंक रही हैं भावनाएं रोटियों सी.


यह रसोईं है मेरे सपनो की दुनिया ,
मधुरता कविता में निशि दिन घोलती हूँ,
चाकुओं को धार देती सोचती हूँ
,कर रही हूँ धार पैनी अक्षरों की ..
और गढ़ रही हूँ गीत कोई स्वप्नदर्शी .
सिंक. रही हैं भावनाएं रोटियों सी .

जमशेदपुर झारखंड

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