जो रूठे हैं उनको चलो मनाएँ भाई
उलझी हैं गाँठें उसको सुलझाएँ भाई ।
आपस में हम प्रीत बढ़ाएँ, थूकें गुस्सा
बीती बातों को हम आज भुलाएँ भाई।
छोड़ें जाति-धरम के झगड़े, एक बनें
मिलकर गीत एक राग में गाएँ भाई।
इस धरती की मिट्टी पावन, चंदन जैसी
जय जयघोष करें हम शीश नवाएँ भाई।
राग-द्वेष को मन में कब तक पाल रखें हम
समय यही है, एक साथ हो जाएँ भाई।
-बलदाऊ राम साहू
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें