जेकर हाथ मा हावै सियानी।
करथे जी उन गजब मनमानी।
जम्मो झन अपन भरत हे कोठी
हरिश्चन्द्र कस कौन हावै दानी।
पोथी-पतरा ला पढ़ के उन मन
बन के बइठे हे अड़बड़ ज्ञानी।
कतको नकटा मन नाक कँटावै
उनला कब्भू नइ लागे बानी।
जब किसान मन के होही सोसन
काबर करही जी खेती किसानी।
जब भेद ह खुल जाही तब संगी
इज्ज़त हो जाही चानी -चानी।
-बलदाऊ राम साहू
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें