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सोमवार, 23 नवंबर 2020

आप कहने की आदत क्यों बदल रहे है.गौतम

 गोपेंद्र कु सिन्हा गौतम
उच्च पदों पर आसीन लोगों में अपने सहयोगियों और अन्य कनिष्ठ कर्मचारियों को आप कह कर संबोधन करने की प्रवृत्ति तेजी से विलुप्त हो रहा है।
सबसे दुखद बात शिक्षा जुड़े शैक्षणिक संस्थानों में भी यह गलत परंपरा जगह बनाना शुरू कर दिया हैण्ण्ण्ण् जिन लोगों पर दूसरों में नैतिकता और संस्कार पैदा करने की जिम्मेवारी है वे भी किसी के सम्मान में कटौती करके अपने आप को सम्मानित महसूस करने लगे हैंण्ण्ण्
 इसके पीछे मुख्य कारण जो मुझे लगता है अब शैक्षणिक और प्रशिक्षण संस्थाओं में इन बातों पर ध्यान नहीं दिया जाना हो सकता है या उच्च पदों पर आसीन लोगों के मन में अपने आपको सुपर पावर समझने की प्रवृत्ति या झूठी शान है।इस जहां में सभी के ऊपर कोई न कोई है फिर अपने आप को दूसरों के सामने गलत तरीके से पेश करने से भला लाभ तो किसी को भी होगा नहींएफिर भी लोग दूसरे को सम्मान देने से हिचकते क्यों है घ् हमारे भारतीय सभ्यता और संस्कृति हमेशा से हमें दूसरों को सम्मान देना सिखलाता है।लेकिन वर्तमान समय में यह प्रवृत्ति बिल्कुल विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गया है खास करके उच्च पदों पर आसीन लोगों में। यह बीमारी अब कार्यालयों से घर तक पहुंचने लगा है जहां छोटे बड़े के संबोधन में कोई फर्क नहीं रह गया।धड़ल्ले से तुम शब्द का प्रयोग किया जाने लगा है।ष्आपष् कहीं किसी कोने में दुबक कर सिसकने लगा है।
पिछले दिनों मेरे एक मित्र ने बताया कि आजकल कार्यालयों में काम करना बहुत मुश्किल हो गया है उसका उसने एक उदाहरण दिया वह जहां आजकल वह कार्य करता है वहां पिछले 38 वर्षों से लगातार काम कर रहे हैं ज्ञानदेवसिंह को उनके उच्च पद पर आसीन व्यक्ति जो बमुश्किल से 30 वर्ष के हैं आप की जगह दूसरे अनादर व्यक्त करने वाले शब्दों का प्रयोग कर संबोधित करते हैं। मेरे मित्र ने बताया इस बात से ज्ञानदेव सिंह हमेशा दुखी रहते हैं।वे बताते हैं आज के उच्च पदों पर आसीन लोगों में आदर सम्मान के साथ साथ नैतिकता की घोर कमी है।इसके कारण अपने उच्च पदाधिकारियों से वह आत्मीय संबंध नहीं जुड़ पाता जो कभी जुड़ा हुआ वह महसूस करते थे ।ऐसा नहीं है कि सिर्फ इसका खामियाजा कनिष्ठ कर्मियों को ही भुगतना पड़ता है बल्कि उसका खामियाजा वरिष्ठ कर्मियों और पदाधिकारियों को अपने सहयोगी यों से 100ः काम लेने में भुगतना भी पड़ता है।फिर भी वे लोग अपनी आदत से बाज नहीं आते।इस बारे में मेरा मानना है किसी को इज्जत और सम्मान देने से किसी व्यक्ति या संस्था का सम्मान कम नहीं होता बल्कि इसके उलट बढ़ जाता है। वैसे उच्च पदों पर कुछ लोग आज भी हैं जो दूसरे लोगों को सम्मान देना जानते हैं और उनसे सम्मान लेना भी जानते हैं और इसका लाभ भी उन्हें अपने सहयोगी से भरपूर मिलता रहता हैण्ण्ण्ण्

गौतम द गेम चेंजर
सामाजिक और राजनीतिक चिंतक
दाऊदनगर औरंगाबाद बिहार

9507341433

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